देहरादून। संवाददाता। अनेक चुनौेतियों को ध्वस्त करते हुए एसडीआरएफ ट्रेकिंग टीम रुद्रप्रयाग पहुँच चुकी है तथा सफर जारी है। टीम अपने लक्ष्य को चिह्नित कर 2 हिस्सों में बंट कर बद्रीनाथ केदार नाथ पौराणिक यात्रा रुट की ओर गन्तव्य है।
एसडीआरएफ मीडिया सेल द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार लक्ष्मणझूला ट्रेक रुट से ही यात्रा मार्ग, एवमं पौराणिक धरोहरों के अवशेष मिलने आरम्भ हो गए थे, कुछ ग्रार्मीणों से बात की गई तो चट्टियों ओर छानियों का महत्व एवम इतिहास की परते स्मृतिकुञ्ज से बाहर अध्यात्मलोक में आने लगी। कुछ स्थानों में ब्रिटिश कालीन विश्राम गृह मिले, जो अपनी मजबूत आंग्ल साम्राज्य, और हमारी गुलामी की दास्तां को बयां करता है। साथ ही अंग्रेजी हुकूमत के वैभवशाली इतिहास की धमक की चमक को भी दर्ज कर रहे है। जहां हिंदुस्तानी अपने रात्रि विश्राम हेतु मणि एवम चट्टियों का सहारा लेते थे वहीं ब्रिटिश नागरिक अपने गेस्टहाउस में थकान मिटाते थे। गहराई से यात्रा रुट को देखने मे ज्ञात होता है कि मार्ग अत्यधिक सरल एवमं आरामदेह है। पानी के स्रोतों को विशेष महत्व दिया गया है वे स्थान जहाँ जलस्रोत उपलब्ध नही है, यात्रा मार्ग नदी के किनारे ही तय हो रहा है, चट्टानी एवम दुर्गम यात्रा मार्र्गो से बचने के लिए, मार्ग की लंबाई को नजरअंदाज किया गया है
ग्रामीण बड़े बुजर्गो ने बताया कि अधिकांश थ उम्र का एक पड़ाव पार कर ही तीर्थ स्थलों को पौराणिक परम्परा रही है जिस उम्र में लम्बा सफर तय करना आसान नही होता था इसलिए एक दिन में यात्रा की कुल दूरी 3 मील लगभग 5 किमी ही होती थीए जिस कारण उसी क्रम में छानियों ए मणियों का विकास होता गयाए एवम चट्टियों अपने स्वरूप में आई। अधिकांश पड़ावों की दूरियां 5 से 7 किमी की दूरी पर है जहाँ मणि विश्राम गृह साधुसंत, एवम आध्यत्मिकों द्वारा प्रयोग में किये जाते थेए वहीं चट्टियों को सामान्य यात्रियों द्वारा रात्रि गुजारने के लिए प्रयोग में लिया जाता था।
यात्रा दल प्रभारी एवम पर्वतारोही निरीक्षक संजय उप्रेती ने बताया कि अनेक आपदाओं एवं मार्र्गो के रख रखाव के अभाव, एवमं जंगली घास वनस्पति के उग जाने से पौराणिक मार्ग अपना स्वरूप बदल चुके है अनेक स्थानों में तो पहचान पाना भी मुश्किल है गोचर से कर्णप्रयाग के मध्य मार्ग पूर्ण रूप से विलुप्त हो गया है स्थानीय निवासियों के माध्यम से तीर्थ मार्ग की स्थिति प्राप्त हुई। ट्रेकिंग टीम द्वारा वर्तमान समय तक फूलचट्टी ,मोहन चट्टी ,नॉटखाल, महादेव चट्टी,गैंडखाल, देवीखाल, जाखणी खाल ,अमोला ,कंडिचट्टी ,रामपुर चट्टी, समेत लगभग 30 छानी , मणि एवम चट्टियों को चिह्नित किया गया है साथ ही शंकराचार्यकालीन अनेक शिवालय भी अपने आकड़ों ओर वैकल्पिक मार्ग निशान के रूप में अंकित किये है।