टिहरी के इस गांव की महिलाओं की बदौलत गांव के हर घर तक पहुंच रहा पेयजल

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टिहरी। पुरखों की विरासत को संवार कर घैरका गांव की महिलाओं ने जल प्रहरी की भूमिका निभाई है। सत्तर साल पुराने बांज के जंगल को सहेज और संरक्षण देकर इन महिलाओं ने गांव में पानी की कमी को दूर किया। गांव के आसपास हर साल 100 पौधे लगाने का लक्ष्य बनाने वाली इन महिलाओं की बदौलत ही गांव के हर घर में पानी पहुंच रहा है।

टिहरी जिले के भिलंगना ब्लॉक में घैरका गांव के ग्रामीण लंबे समय से पेयजल संकट से जूझ रहे थे। पचास के दशक में गांव के ही निवासी फते सिंह, हीरा सिंह और सरोप सिंह के नेतृत्व में ग्रामीणों ने सूखने के कगार पर पहुंच चुके गांव के गदेरे के पास बांज का जंगल उगाने की शुरुआत की। उसके बाद जंगल बढ़ता गया और गांव की पेयजल की जरुरत पूरी होती गई, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से गांव के प्राकृतिक पेयजल स्त्रोत में पानी कम होने से ग्रामीण चिंतित हो गए। वर्ष 2014 में तत्कालीन ग्राम प्रधान सोबनी देवी और अन्य महिलाओं ने पुरखों की विरासत को सहेजने और पेयजल की कमी पूरी करने के लिए फिर से गांव के आसपास पौधरोपण शुरू कर दिया। 
2014 से घैरका गांव के अंधियारखा तोक में पानी के स्त्रोत के पास 100 से ज्यादा बांज और देवदार के पौधे लगाने की शुरुआत की गई। अभी तक गांव के पास एक हजार से अधिक बांज के पौधे लगा दिए गए हैं, जिनमें से पहले लगाए गए पौधे अब पेड़ बन चुके हैं। पौधारोपण के अलावा ग्राम प्रधान सोबनी देवी ने गांव में ढलान वाली जमीन पर आठ पानी की चाल (कृत्रिम छोटी झील) भी बनवाई, जिसमें बरसात का पानी भी एकत्रित होता है और भूगर्भीय जलस्तर भी सही रहने लगा।
उसके बाद मेहनत का नतीजा दिखने लगा और गांव के प्राकृतिक जल स्त्रोत पर पानी की धारा फूट पड़ी। पूर्व प्रधान सोबनी देवी बताती हैं कि गांव में 70 परिवारों में लगभग सात सौ की आबादी है। हर घर में गांव के प्राकृतिक स्त्रोत से पानी की लाइन है। गांव में सिंचाई भी इसी पानी से की जाती है। कुछ साल पहले गदेरे में पानी कम होने के बाद हमने सामूहिक पौधारोपण किया। गांव में चाल बनाकर बरसात के पानी को भी एकत्रित किया। जल संचय के इस कार्य में गांव की अनीता देवी, माया देवी, सुशीला देवी, सकला देवी, रजनी देवी, कमला देवी आदि का योगदान रहा है।

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