रुद्रपुर : कर्म प्रधान विश्व रचि राखा… गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरित मानस में इस जगत को कर्म के लिए बनाया गया है बताया है। साथ ही जीवन में कर्म को ही सबसे प्रधान कहा है। श्रीमद्भगवत गीता में भी भगवान श्री कृष्ण ने कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…अर्थात कर्म पर ही हमारा अधिकार है, कहा है। यही नहीं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने कर्म को ही पूजा बताया है। कुल मिलाकर कर्म ही सर्वश्रेष्ठ है, इससे योग्यता, प्रतिष्ठा अपने आप हासिल होती चली जाती है।
उपर्युक्त बातों को दिव्यांग धन सिंह बिष्ट ने न केवल आत्मसात किया बल्कि जीवन में उतार कर औरों के लिए मिसाल बनें हैं। इनके पूरे जीवन में सिर्फ कर्म ने ही साथ दिया, जिसके दम पर जो चाहा वह पाकर दिखाया। आइए जानते हैं धन सिंह अनवरत कड़े संघर्ष व सफलता की कहानी।
धन सिंह का परिचय
उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के लमगड़ा के मूल निवासी धन सिंह बिष्ट वर्तमान में ऊधमसिंह नगर के फुलसुंगी में रहते हैं। धन सिंह के पिता विशन सिंह बिष्ट आर्मी से रिटायर्ड थे। 14 वर्ष की आयु में जब धन सिंह बिष्ट हाईस्कूल में थे, उस दौरान खेत में काम के दौरान करंट लगने से उन्हें दोनों हाथ खोना पड़ा। इसके बाद उनकी जिंदगी में बहुत परिवर्तन हुआ।
नहीं डिगा हौसला
दोनों हाथ खोने के बाद एक बारगी लगा कि उनका सबकुछ छिन गया। जीवन के आगे अंधकार दिखने लगा। पर इन्हाेंने कर्म को अपना साथी बनाया और अक्षमता को कभी आड़े नहीं आने दिया।
खुद को व्यस्त रखने के लिए कभी व्यापारियों संग उठना बैठना और हेल्पर का काम करना तो कभी जड़ी-बूटी के व्यापारियों संग होते थे। इस तरह करके उन्होंने व्यापार कर गुण सीखा।
रंग लाई मेहनत
धन सिंह ने कड़े परिश्रम कर छोटे-छोटे कामों को करते हुए अंतत: अपने को व्यवसायी के रूप में स्थापित किया। इसके बाद बड़े बेटे कमल बिष्ट को अच्छे से पढ़ाई कराई। उच्च शिक्षा दिलाकर बीटेक कराया और वर्तमान में अल्मोड़ा में जाब कर रहे हैं। बेटी विनीता 12वीं में और छोटा बेटा पंकज 8वीं का छात्र है। जबकि पत्नी गीता गृहणी है।
बुझने न दी काम की ललक
धन सिंह बिष्ट को शुरू से ही सीखने की ललक थी और आज तक कुछ न कुछ सीखने की बात करते हैं। अब तक उन्हें बड़े छोटे वाहन चलाना, घर के कामकाज के लिए कार स्वयं ड्राइव करते हैं। इसके अलावा पेंटिंग, लिखना, बैडमिंटन की बुनाई व जड़ी बूटी का ज्ञान रखते हैं।