(इन दिनों राजीव गांधी फाउंडेशन की संदिग्ध गतिविधियां चर्चा में हैं. फाउंडेशन की शुरुआत ही सरकारी फंड से हुई. एक पारिवारिक नियंत्रण के फाउंडेशन को सरकारी चंदा क्यों और कैसे मिलता रहा? फाउंडेशन अंततः कहाँ और क्या काम करता है? ये अनुत्तरित प्रश्न हैं. ये तो चीन के साथ हुई उठापटक के बाद राजीव गांधी फाउंडेशन की संदिग्ध गतिविधियां चर्चा होने लगी है अन्यथा तो देश को पता भी हवा भी नहीं लगती कि सोनिया फैमली का भी कोई फाउंडेशन है जो सरकारी चंदे के साथ ही तमाम देश विरोधी गुटों से भी चंदे के रूप में मोटी रकम वसूलता है. ‘वी एस के भारत’ में सूर्यप्रकाश सेमवाल की यह रिपोर्ट आँख खोलने वाली है, जरुर पढ़ें-सम्पादक)
1992 में स्थापित राजीव गांधी फाउंडेशन की गतिविधियां और उससे भी ज्यादा धन उगाही के तरीके जनता के लिए चौंकाने वाले हैं. वर्ष 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी के न चाहते हुए भी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.वी. नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री बने, राव ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर डॉ. मनमोहन सिंह को वित्त मंत्रालय का अहम ज़िम्मा सौंपा. नए-नए वित्तमंत्री मनमोहन सिंह ने राजीव गांधी फाउंडेशन के लिए 24 जुलाई, 1991 को 100 करोड़ की कॉरपस निधि 1991-92 के बजट में विशेष प्रावधान कर परिवार के प्रति निष्ठा प्रमाणित की. जब आगाज यह था तो आगे तो बहुत कुछ बाकी था..
फाउंडेशन के अकाउंटेंट और राव सरकार में वित्त राज्यमंत्री रहे रामेश्वर ठाकुर ने 28 जुलाई, 1992 को राज्यसभा में बताया था कि जून के आखिर तक फाउंडेशन को 203 व्यक्तियों के माध्यम से 10.77 करोड़ रुपये प्राप्त हुए.
21 जून, 1992 को दिल्ली में पंजीकृत ट्रस्ट के संस्थापक सदस्यों में उस समय गांधी परिवार और उनके दरबारी जनों के अतिरिक्त पूर्व राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा, अभिनेता अमिताभ बच्चन, एन.के. शेषन और सुनील नेहरू के भी नाम शामिल थे, बाद में सोनिया गांधी ने अपनी सहूलियत और वर्चस्व के हिसाब से इसमें अपनी पसंद और निष्ठा वाले लोग अपडेट किये. 1996 के आम चुनावों में जब कांग्रेस हार गयी तो पूर्व वित्तमंत्री और राज्यसभा सदस्य डॉ. मनमोहन सिंह को फाउंडेशन में सक्रिय किया गया, बाद में पुलक चटर्जी को जोड़ा गया जो सोनिया और मनमोहन के बीच एक बड़ी कड़ी बने. इसी प्रकार अमेरिका में भारत के राजदूत रहे आबिद हुसैन को फाउंडेशन से जोड़ा गया. इसके पश्चात रणनीति के अनुसार अन्य लोग जोड़े गए.
राजीव गांधी फाउंडेशन के काम बहुत कम दिखे और कारनामे ज्यादा, क्लिंटन फाउंडेशन के साथ मिलकर कुछ औपचारिकता हुई भी होगी तो अमेठी और रायबरेली लोकसभा क्षेत्रों में, परिवार के संसदीय क्षेत्र हैं और वहां केवल चुनावी गणित को देखकर राजीव गांधी फाउंडेशन ने कुछ इवेंट किये होंगे. राजीव गांधी फाउंडेशन ने देश के अंदर तो जनता के पैसे का वारा न्यारा किया ही, लेकिन चिंता की बात ये है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बड़े गड़बड़झाले केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि देश की सुरक्षा और संप्रभुता को खतरा पहुंचाने वाले कृत्य भी किये.
अक्तूबर 1992 में फाउंडेशन ने चीन के एक नेता ली पेंग, जिसे बीजिंग का कसाई कहा जाता है और जो तियानमेन स्क्वेयर नरसंहार का आरोपी था, सिक्योरिटी स्कैम के घोटालेबाज हर्षद मेहता (जिसकी कंपनी ग्रो मोर भी घोटाले में भागीदार थी) से राजीव गांधी फाउंडेशन ने 16 करोड़ से अधिक का चंदा लिया. फाउंडेशन ने राजघाट परिसर में राजीव गांधी की समाधि को विकसित करने के नाम पर 4 एकड़ भूमि पर नक्काशी करने का प्रयत्न किया. 1993 में एयर इंडिया और आईटीडीसी को राजीव गांधी स्मृति कार्यक्रम में विदेश से आये प्रतिनिधियों के आवागमन व रहने की सुविधा का व्यय वहन करने को कहा गया. 31 अगस्त, 1995 को स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (सेल) से 1 करोड़ का चंदा लिया गया.
फाउंडेशन के कार्यों और गतिविधियों की झलक 1996 में दिखी, जब फाउंडेशन ने चरम वामपंथी और सीपीआई एमएल पीपल्स वार ग्रुप से जुड़े कांचा इलैया की किताब ह्वाई आई एम नॉट हिन्दू को स्पांसर किया, जिसमें ब्राह्मण विरोधी कार्टून और आर्यों के आक्रमण सिद्धांत को वर्णित किया गया था.
1998 में दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की गयी कि राजीव गांधी फाउंडेशन जनता के पैसे पर सोनिया गांधी और उनके परिवार के लिए ऐशो आराम व राजसी जीवन जीने का साधन मात्र है और कुछ नहीं.
2004 से 2014 के बीच केंद्र में यूपीए की सरकार आने के बाद 2005-06 और 2006-07 में प्रधानमन्त्री राहत कोष से लेकर गृह मंत्रालय, आयरलैंड दूतावास, फोर्ड फाउंडेशन, पर्यावरण और वन मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और लघु उद्योग मंत्रालय आदि से बड़ी राशि का चंदा लिया गया.
अन्तरराष्ट्रीय स्टॉक मार्केट के संचालक, सरकारों को अस्थिर करने के लिए चर्चित जॉर्ज सोरोस से भी फाउंडेशन ने चंदे की राशि ली. अतिवादी, नक्सली और जम्मू कश्मीर में आतंकियों को फंड देने वाले ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क से भी फाउंडेशन जुड़ा. इसी प्रकार जर्मनी के अतिवादी संगठन फ्रेडरिक नौमान फाउंडेशन से भी राजीव गांधी फाउंडेशन ने चंदा प्राप्त किया. देश के अन्दर भी आतंक के उस्ताद जाकिर नाइक और घोटालेबाज हीरा कारोबारी मेहुल चौकसी के अलावा बड़ी लम्बी सूची है. चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ कांग्रेस का रिश्ता ही पुराना है तो फाउंडेशन भी कैसे बचता, लाखों –करोड़ों के डोनेशन के साथ दोनों पार्टियों के नेताओं के समझौते सारी दुनिया को पता हैं.
इस प्रकार राजीव गांधी फाउंडेशन केवल गांधी परिवार की राजसी अय्याशी का ही एक बड़ा केंद्र है, जहां खूब पैसा बरसता रहा है, कोई पूछने वाला नहीं, न खातों की जांच, न आरटीआई का भय….क्लिंटन फाउंडेशन के सहयोग से अमेठी और रायबरेली के कुछ दर्जन प्रखंडों में कुछ कार्य हुआ होता तो राहुल अमेठी छोड़ आज वायनाड के सांसद न होते. राजीव गांधी फाउंडेशन की अनंत कथा नए साक्ष्यों और दस्तावेजों के साथ इसी प्रकार आगे चलती रहेगी ….
DONATIONS RECEIVED FROM CHINA DURING UPA I AND UPA II (As Per Annual Reports Published on Foundation Website)
Year | Government of People’s Republic ofChina | Embassy of The People’s Republic ofChina |
2005-06 | Yes | Yes |
2006-07 | Yes | Yes |
2007-08 | Yes (3,00,000 USD) | NA |
2007-08 | Yes | NA |
2008-09 | Yes | NA |
2009-10 | NA | NA |
2010-11 | NA | NA |
2011-12 | NA | NA |
2012-13 | NA | NA |
2013-14 | NA | NA |
TOTAL DONATION RECEIVED (As Per Annual Reports Published 0n Foundation Website)
Year | Amount |
2005 | Rs. 2.60 Million |
2006 | Rs. 10.35 Million |
2007 | Rs. 11.10 Million |
2008 | Rs. 23.44 Million |
2009 | Rs. 25,448,881 |
2010 | Rs. 36,552,731 |
2011 | Rs. 36,008,078 |
2012 | Rs. 68,852,786 |
2013 | Rs. 106,217,289 |
2014 | Rs. 43,233,863 |
2015 | Rs. 48,186,011 |
2016 | Rs. 13,043,685 |
2017 | Rs. 12,328,080 |
2018 | Rs. 5,768,000 |
2019 | Rs. 9,591,266 |