अनोखी सीढ़ियों वाला रास्ता 59 सालों बाद पर्यटकों के लिए खुली ऐतिहासिक गरतांग गली

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करीब 11 हजार फीट की ऊंचाई पर जाड़ गंगा के ऊपर खड़ी चट्टानों पर बनाया गया सीढ़ीनुमा गरतांग गली को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया है। लोक निर्माण विभाग ने इस विश्व विरासत का पुनर्निर्माण 65 लाख की लागत से किया। जो कि करीब 136 मीटर लंबी सीढ़ीनुमा रास्ता है और चौड़ाई करीब 1.8 मीटर है। यह रास्ता भारत-तिब्बत व्यापार का जीता-जागता गवाह है। साथ ही 1962 में भारत-चीन युद्ध के समय सेना ने भी इसी खतरनाक रास्ते का प्रयोग अंतरराष्ट्रीय सीमा तक पहुंचने के लिए किया था।

गरतांग गली के खुलने पर होटल और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों ने इस पर खुशी व्यक्त की है। डीएम मयूर दीक्षित ने बताया कि गरतांग गली को कोविड गाइडलाइन और एसओपी के अनुरूप पर्यटकों के लिए खोला गया है। इसके लिए गंगोत्री नेशनल पार्क को निर्देशित किया गया है कि भैरो घाटी में पंजीकरण करने के बाद ही पर्यटकों को गड़तांग गली जाने दिया जाए। साथ ही एक बार मे मात्र 10 लोग ही गड़तांग गली का दीदार कर सकेंगे। साथ ही गड़तांग गली ट्रेक पर झुंड बनाकर, डांस सहित खाना बनाना प्रतिबंधित होगा। साथ ही सुरक्षा के देखते हुए गड़तांग गली की रेलिंगों से नीचे झाँकाना भी प्रतिबंधित होगा।

17 वीं शताब्दी में इंडोचायना बॉर्डर के जाडुंग-नेलांग के जाड़ समुदाय के एक सेठ के कहने पर पेशावर के पठानों ने आज की तकनीक को आइना दिखाने वाली तकनीक के साथ जाड़ गंगा के ऊपर खड़ी चट्टानों को काटकर लोहे और लकड़ी का सीढ़ीनुमा पुल तैयार किया था। जिससे गड़तांग गली कहते हैं। इस रास्ते ही भारत और तिब्बत का व्यापार होता था। साथ ही वर्ष 1962 में सेना ने भी इस रास्ते का प्रयोग किया था। उसके बाद इसका रखरखाव न होने के कारण यह जीर्ण-शीर्ण हो गया था। वर्ष 2017 में होटल एसोसिएशन और ट्रेकिंग पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों ने सरकार से इस खोलने की मांग उठाई। उसके बाद इसके पुनर्निर्माण पर कई कार्यवाहियों के बाद अब यह नए स्वरूप में तैयार है।

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