उत्तरकाशी। संवाददाता। गाड़-गधेरों के उपचार को भी नमामि गंगे कार्यक्रम में शामिल करने से ही गंगा का आधा प्रदूषण समाप्त किया जा सकता है। क्योंकि इनके किनारे बसे गांव व बस्तियों से ही काफी गंदगी गंगा जी में प्रवाहित होती है।
जिला स्तरीय गंगा समिति की बैठक में यह बात गंगा विचार मंच के प्रदेश संयोजक लोकेन्द्र सिंह बिष्ट ने कही। उन्होने कहा कि गंगा नदी में प्रदूषण बढ़ने की एक वजह उत्तराखंड की छोटी छोटी नदी नाले गाड़ गधेरे भी है। क्योंकि गंगोत्री से लेकर हरिद्वार तक गंगा में सैकड़ों नदी नाले गाड़ गदेरे गंगा नदी में मिलते है। उन्होने बताया कि इन गाड़ गदेरों की लंबाई 5 से 25 किलोमीटर तक होती है और इन गाड़ गदेरों के बहाव वाले क्षेत्रों के दोनों छोर पर पहाड़ के अधिकांश गाँव व बस्तिया बसी हैं।। इन्ही के किनारों पर इनकी खेती बाड़ी रहती है,इन गाड़ गदेरों से इन्हें पीने का पानी, सिंचाई का पानी व जरूरत का बजरी पत्थर घास लकड़ी व मांस मछली भी आसानी से उपलब्ध होती है। कहा कि ये गाड़ गदने पहाड़ की लाइफ लाइन हैं।
उन्होने कहा कि बिडम्बना ये है पहाड़ के किसी भी गांव में कूड़ा निस्तारण की कोई व्यवस्था न तो सरकार के स्तर पर है न पंचायत के स्तर पर। इसीलिए लोग वर्ष भर अपना कूड़ा कचरा प्लास्टिक व मृत जानवरों को भी इन्ही नदी नालो में डालते हैं। बरसात के दिनों में गाड़ गदेरे भी उफान पर होते हैं जो तमाम कूड़ा कचरा बहाकर गंगा में उड़ेल देते हैं। इन्ही में से एक उत्तरकाशी से लगा कोटि नाला जो समस्त कूड़े कचरे प्लास्टिक को गंगा नदी में उड़ेल रहा है। बैठक में जिलाधिकारी आशीष चौहान ने कोटि गदेरे व ज्ञानसू गाड़ के कूड़े कचरे को तत्काल हटाने के निर्देश दिए।