उत्‍तरकाशी के एक गांव की पूनम राणा दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी में-शैलेंद्र गोदिया

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पहाड़ की जिंदगी और पहाड़ जैसे दु:ख का उत्‍तरकाशी जिले के एक गांव की पूनम राणा ने हौसले से सामना किया और अब यह बेटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी कर रही है।

उत्‍तरकाशी : नियति के निष्ठुर फैसले भी उसके कदमों को डगमगा नहीं पाए। पहाड़ की जिंदगी और पहाड़ जैसे दु:ख का उसने हौसले से सामना किया और अब यह बेटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ने की तैयारी कर रही है। इसी साल जनवरी में 20 साल की पूनम राणा पहली बार उत्तरकाशी जिले के छोटे से गांव से देहरादून पहुंची तो बहुत सकुचाई और सहमी हुई थी। इतना बड़ा शहर उसने पहली बार देखा, लेकिन अब अगले साल जनवरी में वह दक्षिण अमेरिका की माउंट आकांका गोवा चोटी (22000 फीट) पर चढ़ेगी। एवरेस्ट फतह करने वाली पहली महिला बछेंद्री पाल की प्रेरणा ने उसकी दुनिया बदल दी।

उत्तरकाशी से 12 किलोमीटर दूर नाल्ड गांव की पूनम के लिए पहाड़ चढ़ना कोई नई बात नहीं है। ऐसे ही भूगोल में उसकी परवरिश हुई, लेकिन वक्त ने भी उसकी राह में पहाड़ खड़े करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पूनम बताती है ‘वर्ष 1997 में मेरा जन्म हुआ और छह माह की थी मां का निधन हो गया। पांच साल की उम्र में पिता भी चल बसे।’ वह कहती है कि हम लोग बहुत गरीब हैं। पिता धर्म सिंह गांव में ही मजदूरी कर किसी तरह हम चार भाई बहनों का पेट भरते थे। थोड़ी सी जमीन भी है, जिससे बामुश्किल कुछ मिल पाता है।

पिता के गुजरने के बाद बड़ा भाई मजदूरी कर घर का खर्च चलाने लगा, लेकिन नियति को यह भी मंजूर नहीं हुआ। जून 2015 में अचानक वह बीमार हुआ और उसकी मौत हो गई। इसके बाद उसी साल सितंबर में दूसरे भाई की भी हादसे में जान चली गई। एक के बाद एक इन घटनाओं ने पूनम को पूरी तरह तोड़ दिया। वह बताती है ‘अब परिवार में मैं और एक भाई राम सिंह हैं। भाई एक ट्रैकिंग कैंप में काम करता है।’

वह कहती है कि हादसे के बाद ट्रैकिंग कैंप का स्टाफ ढाढस बंधाने घर आया। इन्हीं में से किसी ने एवरेस्ट विजेता और टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की निदेशक बछेंद्री पाल को पूनम के बारे में बताया। द्रवित बछेंद्री ने पूनम को उत्तरकाशी जिले की अस्सी गंगा घाटी में स्थित टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के कैंप में रख लिया।

अच्छे दिन भी आएंगे

पूनम कहती हैं मार्च 2016 में वह कैंप में पहुंची। तब बछेंद्री ने उन्हें हौसला देते हुए कहा कि पहाड़ में उतार-चढ़ाव होते ही हैं, जिंदगी भी ऐसी ही है। अच्छे दिन भी आएंगे। पूनम बताती है कि ‘उनके ये शब्द मेरे लिए प्रेरणा बन गए।’ इसके बाद पूनम को नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक और एडवांस कोर्स में प्रवेश दिलाया गया और दोनों कोर्स में बेस्ट स्टूडेंट रही।

पहली बार आई देहरादून

पूनम कहती है कि जब टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन ने एवरेस्ट बेस कैंप अभियान में चयन किया तो उस समय मेरे पास किसी तरह का पहचान पत्र तक नहीं था और वे पासपोर्ट मांग रहे थे। वह कहती है ‘पासपोर्ट बनाने के लिए मैं पहली बार जनवरी 2017 में उत्तरकाशी से बाहर निकली और देहरादून पहुंची।’ वह बताती है कि अप्रैल 2017 में एवरेस्ट बेस कैंप के आरोहण के लिए काठमांडु गई और सफलता पूर्वक अभियान पूरा किया। अब मार्च 2018 में एवरेस्ट अभियान शुरू होगा। इसके बाद वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान देगी। पूनम उत्तरकाशी राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में बीए अंतिम वर्ष की छात्रा है।

एवरेस्ट विजेता और निदेशक (टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन) बछेंद्री पाल का कहना है कि इतनी मेहनती लड़की मैंने जीवन में नहीं देखी। कैंप में इसका जज्बा और समर्पण देख मैं समझ गई थी कि एक दिन यह एवरेस्ट फतह करेगी।(साभार-दैनिक जागरण)

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