पिथौरागढ़। अल्मोड़ा संसदीय सीट से तीन बार लोकसभा का प्रतिनिधित्व कर चुके हरीश रावत इस बार अपने शिष्य को प्रचार के लिए वक्त शायद ही दे पाए हैं। रावत अपनी नैनीताल सीट पर ही खुद उलझे हुए हैं। इन हालत में कांग्रेस प्रत्याशी को स्थानीय श्रत्रपों पर ही निर्भर रहना होगा।
अल्मोड़ा संसदीय सीट से तीन बार लोकसभा में प्रतिनिधित्व करने वाले हरीश रावत इस क्षेत्र से बड़े नेता के रूप में जाने जाते रहे हैं। संसदीय सीट के अंतर्गत आने वाले अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर जनपद में उनकी ठीकठाक पकड़ भी मानी जाती है। यहां के अधिकांश मतदाताओं को वह व्यक्तिगत रू प से जानते-पहचानते हैं। कई परिवारों की तीन-तीन पीढियों से उनका सम्पर्क रहा है। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने धारचूला से उपचुनाव लड़ा और एक बार भी क्षेत्र में आए बगैर आसानी से यह सीट जीत ली। इसी लिहाज से हरीश रावत का यहां एक बार भ्रमण भी प्रत्याशी के लिहाज से फायदेमंद हो सकता है। लेकिन इस वक्त हरदा नैनीताल संसदीय सीट से खुद मैदान में हैं और बुरी तरह उलझे हुए भी हैं।
अल्मोड़ा संसदीय सीट से कांग्रेस उम्मीदवार प्रदीप टम्टा को राजनीति में हरीश रावत का ही शिष्य माना जाता है, लेकिन इस बार शिष्य के लिए गुरु के पास समय नहीं है। ऐसे में टम्टा को खुद पूरी रणनीति बनानी पड़ रही है। संसदीय सीट पर वह विधानसभा क्षत्रपों के भरोसे हैं। कांग्रेस के पास इस सीट पर दूसरा ऐसा बड़ा नेता नहीं है जो पूरी अल्मोड़ा संसदीय सीट में प्रभाव रखता हो। कांग्रेस के प्रांतीय प्रवक्ता भुवन पांडेय का कहना है कि हरीश रावत प्रदीप टम्टा के समर्थन में जल्द पिथौरागढ़ में एक सभा करेंगे। वह फोन के जरिए अपने समर्थकों से लगातार संपर्क बनाए हुए हैं।