इगास पर्व पर सीएम का जनभावनाओं को छूने का प्रयास, जानें- वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के पीछे की कहानी

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अपनी सांस्कृतिक विरासत और परंपराओं का संरक्षण और इन्हें भावी पीढ़ी को सौंपना कर्तव्य है, तो जिम्मेदारी भी। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसका बखूबी निर्वहन किया है। उत्तराखंड में दीपावली के 11 दिन बाद मनाए जाने वाले लोकपर्व इगास पर अवकाश घोषित कर धामी ने आगामी विधानसभा चुनाव से पहले जनभावनाओं को छूने का प्रयास तो किया ही, यह संदेश देने की कोशिश भी की है कि उनकी सरकार संस्कृति और परंपराओं के संरक्षण-संवर्द्धन के लिए प्रतिबद्ध है।

संस्कृति, परंपराएं, रीति-रिवाज किसी भी क्षेत्र का स्वाभिमान होते हैं। ये जीवन का अटूट हिस्सा हैं। इगास पर्व पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर मुख्यमंत्री धामी ने परंपराओं और संस्कृति के संरक्षण के साथ ही इनसे जनसामान्य को जोडऩे की दिशा में कदम बढ़ाया है। उत्तराखंड बनने के बाद यह पहला मौका है, जब इस लोकपर्व पर अवकाश घोषित किया गया है।

असल में सरकार पूर्व में विभिन्न पर्वों व अवसरों पर अवकाश घोषित करती रही है। इसे देखते हुए राज्य के लोकपर्व इगास पर भी अवकाश की मांग लंबे अर्से से उठ रही थी, ताकि लोग पूरे उल्लास के साथ यह पर्व मना सकें। साथ ही भावी पीढ़ी को अपनी संस्कृति और परंपराओं से परिचित करा सकें।

इस दृष्टिकोण से मुख्यमंत्री धामी के निर्णय को उचित ठहराया जा सकता है। केंद्रीय पर्यटन एवं रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट, प्रवासियों को अपनी जड़ों से जोड़ने की मुहिम में जुटे राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी मुख्यमंत्री के इस निर्णय को सही ठहराते हैं। इंटरनेट मीडिया में इगास की छुट्टी की तारीफ हो रही है और मुख्यमंत्री के निर्णय को एक लंबी लकीर खींचना बताया जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में भी इसे चुनाव से पहले जनभावनाओं को छूने के प्रयास के रूप में जोड़कर देखा जा रहा है।

वर्षों से चली आ रही परंपरा

मान्यता है कि भगवान श्रीराम जब रावण का वध करने के बाद अयोध्या पहुंचे तो इसकी सूचना उत्तराखंड को 11 दिन बाद मिली और तब यहां दीपावली मनाई गई थी। एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार करीब 400 साल पहले वीर भड़ माधो सिंह भंडारी के नेतृत्व में टिहरी, उत्तरकाशी, जौनसार, श्रीनगर समेत अन्य क्षेत्रों से योद्धा बुलाकर सेना तैयार की गई। इस सेना ने तिब्बत पर हमला बोलते हुए वहां सीमा पर मुनारें गाड़ दी थीं। तब बर्फबारी होने के कारण रास्ते बंद हो गए। कहते हैं कि उस साल गढ़वाल क्षेत्र में दीपावली नहीं मनी, लेकिन दीपावली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी युद्ध जीतकर गढ़वाल लौटे तो पूरे क्षेत्र में भव्य दीपावली मनाई गई। तब से कार्तिक माह की एकादशी पर यह पर्व मनाया जाता है।

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