हर्षिल घाटी के इस गांव में होती है पांडवों और द्रौपदी की पूजा, होता है उत्सव; लोग करते हैं ये खास नृत्य

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उत्तरकाशी। हर्षिल घाटी के बगोरी गांव में पांडव नृत्य का आयोजन चल रहा है। इस आयोजन में पहाड़ की लोक संस्कृति की झलक दिखी। ग्रामीणों ने इस आयोजन में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया। साथ ही पांडव पश्वाओं से भी आशीर्वाद लिया।

बगोरी के ग्रामीण पहले नेलांग और जादूंग गांव में पांडव लीला का आयोजन करते थे। 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान नेलांग और जादूंग के ग्रामीणों को उनके मूल गांव से हटाया गया था। तब से ये ग्रामीण बगोरी में रह रहे हैं। बगोरी में ही अपने पारंपरिक लोक उत्सव मनाते आ रहे हैं। बगोरी गांव में हर वर्ष पांडव नृत्य का आयोजन होता है।

पांच पांडवों और द्रौपदी की हुई पूजा
इस बार शुक्रवार की रात से पांडव नृत्य शुरू हुआ, जिसमें पांच पांडवों और द्रौपदी की पूजा-अर्चना की गई, जिसके बाद पांडव नृत्य शुरू हुआ। बगोरी के पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा कहते हैं कि पांडव नृत्य देव भूमि का पारंपरिक लोकनृत्य है। पांडव अपने अवतरण काल में यहां वनवास, अज्ञातवास, भगवान शंकर की खोज और स्वर्गारोहिणी के समय आए थे।

ये है मान्यता
पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा कहते हैं कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडवों ने अपने विध्वंसकारी अस्त्र और शस्त्रों को उत्तराखंड के ग्रामीणों को ही सौंप दिया था, जिसके बाद वे स्वर्गारोहिणी के लिए निकल पड़े थे। इसलिए अभी भी यहां के अनेक गांवों में पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों की पूजा होती है और पांडव लीला का आयोजन होता है।

अब एक गांव में ही होता है आयोजन
पूर्व प्रधान भवान सिंह राणा कहते हैं कि पहले नेलांग और जादूंग गांव में पांडव लीला का आयोजन होता था, परंतु अब वर्ष में केवल एक दिन ही पैतृक गांव जाने का अवसर मिलता है। उसी दिन जादूंग गांव में पांडव पूजा की जाती है।

दशहरा पर्व तक चलेगा पांडव लीला का आयोजन
गांव के वरिष्ठ नागरिक नारायण सिंह नेगी, जयपाल रावत, सत्य सिंह पाल और भाल सिंह भंडारी ने कहा कि जाड़-भोटिया समाज अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध है। पांडव लीला का आयोजन दशहरा पर्व तक चलेगा। समापन अवसर पर सभी ग्रामीण पूजा-अर्चना और सभी के लिए मंगलकामनाएं करेंगे।

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