मर्म विज्ञान एवं मर्म चिकित्सा पर कार्यशाला : डा. जोशी ने कहा- प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति है मर्म विज्ञान

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हरिद्वार (संवाददाता) : मर्म विज्ञान एवं मर्म चिकित्सा की कार्यशाला का आयोजन मृत्युजंय मिशन के तत्वावधान में नंदीपुरम नोरंगाबाद गैंडीखाता में वैदिक आयुर्विज्ञान प्रतिष्ठान संस्थान के संयोजन में हो रहा है। जिसमें देश विदेश के चिकित्सक और जिज्ञासु भारत की प्राचीनतम चिकित्सा पद्धति की जानकारी और प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं।

मर्म चिकित्सा को पुर्नजीवित तथा देश विदेश में प्रचारित प्रसारित करने वाले ऋषिकुल आयुर्वैदिक कॉलेज के परिसर निदेशक डा. सुनील जोशी ने कार्यशाला में आये हुए प्रशिक्षणार्थीयों को मर्म चिकित्सा के विषय में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा वेदों पर आधारित प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है जो आयुव्रेद का ही एक अंग है। कार्यशाला के समन्वयक कनाड़ा से आये ज्ञानप्रकाश ने शरीर के ऊपरी भाग के मर्म बिंदुओं की जानकारी देते हुए बताया कि तल हृदय, शिप्र मर्म, मणि बंध, कूपर मर्म, अणि, उर्वी, गुल्फ, इन्द्र बस्ती, जानु मर्म को उत्प्रेरित करने से शरीर की व्याधियों का शमन किया जाता है।

मर्म चिकित्सक मयंक जोशी ने बताया कि मनुष्य के शरीर में उसकी व्याधियों का निदान समाहित है। 107 मर्म बिन्दुओं को उत्प्रेरित कर शरीर में छिपी हुई ऊ र्जा को जाग्रत किया जाता है। उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा विश्व की सबसे सुलभ, सस्ती, सार्वभौमिक, चिकित्सा पद्धति है। जिसका विश्व में कहीं भी किसी भी व्यक्ति पर इसका सफल उपयोग किया जा सकता है।

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