विश्व हिन्दू परिषद ने धर्म संसद में प्रस्ताव पास कर छुआ-छूत मुक्त भारत, समरस, समृद्ध, सबल समाज बनाने का संकल्प लिया

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उडुपी (कर्नाटक) :  बिगत दिनों  विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित धर्म संसद अधिवेशन में प्रस्ताव पारित कर छुआ-छूत मुक्त भारत, समरस, समृद्ध, सबल समाज बनाने का संकल्प लिया गया है। धर्म संसद अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में कहा गया कि छुआछूत एवं ऊँच-नीच का हमारे धर्म और समाज में कोई स्थान नहीं है। छुआ-छूत विचारों एवं व्यवहार में भी समाप्त होनी चाहिए। विश्व हिन्दू परिषद की उडुप्पी (कर्नाटक) के सन्त सम्मेलन में ‘‘ हिन्दवः सोदरा सर्वे ’’ अर्थात् हिन्दू परिवार में जन्मे हम सब भाई हैं, समान हैं, यह निर्णय पूज्य सन्तों ने ही किया था और इस निर्णय को कार्यान्वित करके हम छुआछूत, ऊँच-नीच से मुक्त, समृद्ध, समरस हिन्दू समाज अर्थात् ‘ हिन्दू हम सब एक ’ का समवेत स्वर से संकल्प व्यक्त करते हैं।

धर्म संसद में उपस्थित संत समाज की मान्यता है कि हिन्दू धर्म में सामाजिक छुआ-छूत को कभी शास्त्रीय मान्यता नहीं रही है , क्योंकि हम सबकी संस्कृति समान है और उस संस्कृति में घोषित परम्परा है ’ आत्मवत् सर्वभूतेषु ’ अर्थात् प्राणिमात्र में एक ही आत्मा है। जगद्गुरु रामानंदाचार्य जी ने सिद्धान्त दिया है कि ‘‘ सर्वे प्रपत्तेरधिकारिणः सदा ’’ अर्थात् सभी जीव सदा शरणागति के अधिकारी हैं। उन्होंने यहाँ तक कहा है कि ‘‘ जाति-पाति पूछे नहिं कोई , हरि को भजे सो हरि का होई। ’’ संत तुलसीदास जी ने भी ” सिया राम मय सब जग जानि , करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी। ’’ कह कर सभी को सिया-राम रूप मानकर हाथ जोड़ कर प्रणाम किया है। भारत का दर्शन सर्वत्र प्रभु-दर्शन करता है तो फिर हिन्दू समाज में कोई भेदभाव हो ही नहीं सकता।

हिन्दू समाज की एकता एवं रक्षा हेतु हिन्दू बन्धुओं से धर्म संसद अपेक्षा करता है कि-

  • हमारे मंदिरों , घरों तथा संस्थाओं के द्वार सभी समाज-बन्धुओं के लिए खुले हों।
  • सम्पूर्ण हिन्दू समाज अपने समाज के सभी घटकों को मंदिर प्रवेश और दर्शन कराने का प्रबन्ध करें।
  • गांव की श्मशान भूमि एवं जल प्राप्त करने का तालाब , कुँआ , नल सभी के लिए उपलब्ध हो।
  • महापुरुष किसी एक जाति वर्ग के न होकर सम्पूर्ण राष्ट्र के होते हैं अतः सभी महापुरुषों की जैसे-नानक , बुद्ध , महावीर , वाल्मीकि , रविदास आदि की जयन्तियाँ और पुण्य तिथियाँ सभी हिन्दू एकत्रित होकर मनायें।
  •  हिन्दू परिवार मित्र-हम अनुसूचित जाति के परिवार को मित्र बनाकर उनके साथ आत्मीयता का व्यवहार करें।
  • कन्या पूजन-हम अपने घर में किसी भी महीने की अष्टमी के दिन अनुसूचित जाति सहित सभी जाति की कन्याओं को घर बुलाकर उनके चरण धोकर पूजन करें।
  • संत-महात्माओं से भी अनुरोध है कि वे अनुसूचित जातियों, जनजातियों की बस्तियों, ग्रामों में पदयात्रा, प्रवचन, सत्संग प्रारंभ करें, सत्संगों का विस्तार करें और ‘ संगत-पंगत ’ के द्वारा समरसता का निर्माण करें और उपदेश दें।
  • विधर्मियों के द्वारा हिन्दू समाज के किसी घटक अथवा समुदाय को धर्मभ्रष्ट करने , हिन्दू जीवन-मूल्यों तथा मान-बिन्दुओं के अपमान के प्रसंगों पर सम्पूर्ण हिन्दू समाज एकजुट होकर प्रतिकार कर अपनी एकता का परिचय दें।

धर्म संसद के आज के अधिवेशन की अध्यक्षता मुम्बई के पूज्य स्वामी विश्वेश्वरानंद जी महाराज ने की। इस सत्र में विश्व हिन्दू परिषद के कार्याध्यक्ष डॉ. प्रवीण भाई तोगडिया ने विश्व हिन्दू परिषद का निवेदन प्रस्तुत करते हुए कहा कि अस्पृश्यता शास्त्रसम्मत नहीं है। वेदों सहित किसी भी धर्मशास्त्र में अस्पृश्यता की मान्यता नहीं है। विश्व हिन्दू परिषद भारत से अस्पृश्यता के उन्मूलन के लिए कटिबद्ध है। उडुपी में 1969 से प्रारंभ हुआ यह अभियान अपना प्रभाव दिखा रहा है। राम जन्मभूमि का शिलान्यास एक दलित कार्यकर्ता कामेश्वर चैपाल द्वारा करवाकर व डोम राजा के घर पर संतों का भोजन कराकर विश्व हिन्दू परिषद ने अपने संकल्प को आगे बढ़ाया है। अब ‘‘ हिंदू मित्र परिवार योजना ’’ के द्वारा लाखों हिंदू दलित बन्धुओं के साथ पारिवारिक सौहार्द निर्माण कर रहे हैं। ‘‘ एक मंदिर , एक कुंआ , एक श्मशान-तभी बनेगा भारत महान् ’’ का मंत्र सारे भारत में घूम रहा है। अमरावती महाराष्ट्र से पधारे पूज्य जितेन्द्रनाथ जी महाराज ने अस्पृश्यता उन्मूलन का प्रस्ताव रखते हुए कहा कि समरसता के लिए यह समय सबसे अधिक उपयुक्त है। समरसता का मंत्र साकार होते हुए दिखाई दे रहा है। महामहिम राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री समरसता के जीवंत उदाहरण हैं। वेदों व शास्त्रों के अध्ययन का अधिकार सबको मिलना चाहिए। भारत के सभी संत मिलकर अस्पृश्यता का कलंक मिटाने का संकल्प लेते हैं। यह समाप्त होगी ही और समरस भारत एक महाशक्ति के रूप में प्रकट होगा। जब हमारे इष्ट देवों की कोई जाति नहीं तो भक्तों की कैसे हो सकती है ?

रेवासा पीठाधीश्वर पूज्य राघवाचार्य जी महाराज ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए कहा कि मुस्लिम और अंग्रेजों के शासन ने ही इस भेदभाव का निर्माण किया और इसको मजबूती दी। गुलामी की देन इस कुप्रथा का उन्मूलन करके ही भारत को मजबूती दी जा सकती है। बौद्ध संत भन्ते राहुलबोधि जी ने भी इस प्रस्ताव का अनुमोदन करते हुए कहा कि डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अस्पृृश्यता उन्मूलन के लिए जीवनभर प्रयास किया। सफल न होने पर ही उन्होंने बौद्ध धर्म को स्वीकार किया। भारत की सभी आध्यात्मिक परंपराओं के संतों के इस संकल्प के कारण डॉ. अम्बेडकर का सपना अवश्य साकार होगा। पूज्य हरिशंकर दास जी , राजस्थान ने कहा कि छुआछूत हमारे समाज की विकृति है जो अवश्य दूर होगी। पूज्य रमेशदास जी महाराज , पंजाब , फूलडोलबिहारी दास जी महाराज , वृन्दावन , सुखवेन्द्र तीर्थ जी महाराज , उडुपी ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। श्रीमहंत लिंगाशिवाचार्य जी महाराज बेंगलोर ने उद्घोष करते हुए कहा कि वीर , शैव सम्प्रदाय अलग नहीं है। यह हिंदू समाज का ही अंगभूत है। इन दोनों को अलग नहीं किया जा सकता। गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने प्रस्ताव पारित करवाते समय कहा कि जब एक भगवान ने ही चराचर जगत का निर्माण किया है तो उनमें भेदभाव कैसे हो सकता है ? भक्ति भाव ही सबको एक साथ बांध सकता है। संतों के संकल्प से समरसता का सपना अवश्य साकार होगा।

पूज्य गंगाधरेन्द्र सरस्वती जी महाराज कर्नाटक ने मंदिरों का अधिग्रहण व मंदिरों के ध्वंस के विरोध में प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि मंदिरों की व्यवस्था सरकार के नहीं , समाज के हाथों में होनी चाहिए। कर्नाटक में भी कानून बनाकर मंदिरों के स्वामित्व को हड़पने का षड़यंत्र किया गया था। इसका प्रबल विरोध हिंदू समाज के संतों ने किया। संतों के आग्रह पर मंदिरों की देखभाल के लिए एक स्वायत्त बोर्ड बनाया गया परन्तु बाद में इस बोर्ड को भंग करके एक नया कानून बनाया गया जिसे न्यायपालिका ने निरस्त कर दिया। इसके बावजूद कर्नाटक सरकार मंदिरों पर कब्जे का हर तरीके से प्रयास कर रही है। चुनाव नजदीक होने के कारण इसे अभी रोका गया है। परन्तु राज्य सरकार के इरादे अब भी अपवित्र हैं। पूज्य संग्राम जी महाराज , तेलंगाना ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि सरकारों का काम मंदिर चलाना नहीं है। हरियाणा से पधारे योगीराज दिव्यानंद जी महाराज ने हरियाणा में अधिग्रहण किए गए मंदिरों पर राज्य सरकारों को चेतावनी देते हुए कहा कि यह आदेश अविलम्ब वापिस लेना चाहिए। इन मंदिरों का समाजिकरण चाहिए सरकारीकरण नहीं। केरल से पूज्य अयप्पादास जी महाराज ने इस प्रस्ताव का समर्थन करते हुए कहा कि पार्थसारथी मंदिर पर जिस तरह सरकार ने कब्जा किया है वह घोर निंदनीय है। कर्नाटक से भी कालहस्तेन्द्रनाथ जी महाराज ने इस प्रस्ताव के समर्थन में बोलते हुए सभी राज्य सरकारों को चेतावनी दी कि वे हिंदू समाज को ही मंदिर चलाने दें , यह सरकारों का काम नहीं है। न्यायपालिका के आदेश की आड़ में तोड़े गए हिंदू मंदिर इन सरकारों की दूषित मानसिकता को दर्शाते हैं। पूज्य रामशरणदास जी महाराज , हिमाचल , पूज्य साध्वी प्रज्ञा भारती , भोपाल , श्रीमहंत प्रेमदास जी महाराज , राजस्थान , पूज्य गुरुपदानन्द जी महाराज , बंगाल ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। धर्मसंसद में उपस्थित सभी संतों ने ओउम्  ध्वनि से सर्वसम्मति के साथ इस प्रस्ताव को पारित किया।

 

 

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