छत्तीसगढ़ के बस्तर में एक महिला कृषक बिखेर रही है ‘चंदन’ की खुशबू और जैविक खेती से बना रही गाँव को समृद्ध

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जगदलपुर (छत्तीसगढ़) :  बस्तर संभाग की एक ‘महिला कृषक’ इस घोर नक्सली क्षेत्र को चंदन की खुशबू से महकाने के प्रयासों में जुटी है. जगदलपुर से करीब 10 किलोमीटर दूर गारावंड खुर्द गांव की महिला कृषक प्रभाती भारत ने जैविक खेती को अपनाकर अपने गांव को समृद्ध बनाने की ठान ली है. इसके लिए उन्होंने दूसरों के खेतों में काम करने वाली महिलाओं का ग्रुप बनाया और इन्हें जैविक खेती के लिए प्रशिक्षित करना शुरु कर दिया. बस्तर के इस गांव में अब रासायनिक खेती का प्रतिशत बहुत कम हो गया है. इसके साथ ही प्रभाती चंदन के व्यवसायिक रोपण पर भी जोर दे रहीं हैं.
प्रभाती ने बताया कि दस साल पहले उन्होंने ओडिशा से चंदन के 15 पौधे लाकर इसे अपने फार्म हाउस में लगाया. पौधे तेजी से बढ़े और अब ये 15 से 20 फीट तक ऊंचे हो गए हैं. शासकीय उद्यानिकी कॉलेज के वैज्ञानिक केपी सिंह ने बताया कि बस्तर की आबो-हवा चंदन की पैदावार के अनुकूल है. यहां इसकी अच्छी संभावना है. हालांकि इसके व्यावसायिक उत्पादन में सबसे बड़ी समस्या चोरों से होती है.
चंदन का पेड़ कम से कम 34 साल बाद उपयोगी होता है, जिसमें जमीन से दो फीट नीचे जड़ तक और तने की ओर 2 फीट ऊपर के हिस्से में ऊपरी आवरण हटाने के बाद हर्ट-वुड मिलता है, जिसका उपयोग तेल निकालने के लिए किया जाता है. प्रभाती के पति विजय भारत भी वनौषधीय पौधों की जानकारी रखते हैं. अपने काम में प्रभाती को उनका खासा सहयोग मिलता है. उनके ससुर विशाल भारत वन विभाग में रेंजर थे. प्रभाती ने औषधीय पादप बोर्ड के सहयोग से प्रशिक्षण प्राप्त कर ग्रामीण वनस्पति विशेषज्ञ का कोर्स पूरा किया है. अब वे विलुप्त हो रही प्रजातियों पर काम कर रहीं हैं.

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