हल्द्वानी। उत्तराखंड के मुनस्यारी में बने देश के पहले लाइकेन गार्डन को अब अंतरराष्ट्रीय शोध पत्र ने भी जगह दी है। इंटरनेशनल लाइकेन लॉजिकल न्यूज लेटर ने विस्तार से इस गार्डन को अपने पत्र में शामिल किया है। इससे पूर्व फिनलैंड की एक यूनिवर्सिटी ने हल्द्वानी के जैव विविधता पार्क की तारीफ की थी। वहीं, फ्रांसीसी शोध पत्र में तप्तकुंड में सबसे ऊंचाई मिले आर्किड प्रजाति का विवरण प्रकाशित हुआ था।
वन विभाग के मुताबिक इंटरनेशनल एसोसिएशन फोर लाइकेनलोजी हर साल दुनिया भर में लाइकेन के शोध और नई प्रजातियों के मिलने व इनकी वर्तमान स्थिति को लेकर एक रिसर्च पेपर तैयार करती है। लाइकेन फंगस व शैवाल का मिश्रण होती है। उत्तराखंड के नीति घाटी, तपोवन व चकराता के जंगलों में इसकी मौजूदगी ज्यादा है। इसका इस्तेमाल इत्र व सनक्रीम बनाने में किया जाता है। वहीं, दक्षिण भारत के व्यंजनों में स्वाद बढ़ाने के लिए उपयोग किया जाता है। पिछले साल जून में वन अनुसंधान केंद्र ने मुनस्यारी में करीब डेढ़ एकड़ जमीन पर लाइकेन गार्डन तैयार किया था।
इस गार्डन में 120 प्रजातियां देखने को मिलेंगी। यह देश का पहला लाइकेन गार्डन माना गया। लाइकेन की खास बात यह है कि औषधीय गुणों से भरपूर होने के साथ यह प्रदूषण का सबसे बड़ा संकेतक माना जाता है। यानी जहां पर इसकी मौजूदगी होगी। उस क्षेत्र में प्रदूषण की मात्रा न के बराबर होती है। इस पर रिसर्च को लेकर पूर्व में वन अनुसंधान ने नैनीताल में रिसर्च सेंटर बनाकर शोध भी किया था। ज्यादातर बुग्याल लैंड के बाद यह मिलते हैं। लोकल भाषा में इसे झूला घास भी कहा जाता है।
प्रदूषण का इंडिकेटर है लाइकेन
उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने बार्डर एरिया मुनस्यारी (पिथौरागढ़) में देश का पहला लाइकेन गार्डन तैयार कर किया है। प्रदेश में लाइकेन की छह सौ प्रजातियां मिलती हैं जबकि देश में कुल 2714 हैं। शोधार्थियों को इस गार्डन में 120 प्रजातियां देखने को मिलती हैं। औषधीय समेत अन्य गुणों से भरपूर लाइकेन को प्रदूषण का इंडिकेटर माना जाता है। माना जाता है कि लाइकेन वहीं पनपता है जहां प्रदूषण की मात्रा नहीं होगी।