नैनीताल हाईकोर्ट ने वर्चुअल तरीके से (बिना चीर फाड़ किए स्कैनिंग के जरिये) पोस्टमार्टम करने के मामले में दायर जनहित याचिका पर केंद्र सरकार और राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि जब सीटी स्कैन और एमआरआई वर्चुअल हो सकता है तो पोस्टमार्टम क्यों नहीं।
न्यायमूर्ति शरद कुमार शर्मा एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष ऋषभ कुमार मिश्रा और अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में कहा गया कि शवों के पोस्टमार्टम में जो प्रक्रिया अपनाई जा रही है वह गलत और अमानवीय है।
याचिका में कहा गया है कि कोविडकाल में जब एमआरआई, सीटी स्कैन वर्चुअल हो सकता है तो पोस्टमार्टम वर्चुअल (बिना चीर फाडृ किए स्कैनिंग के जरिये) क्यों नहीं। याचिका में कहा गया कि जब सारे साधन उपलब्ध हैं तो पोस्टमार्टम भी वर्चुअल हो सकता है। इस प्रक्रिया को अपनाने से समय और पैसों की बचत भी होगी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने इस मामले में केंद्रीय कानून मंत्री को प्रत्यावेदन भेजा था लेकिन कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने केंद्र सरकार और राज्य सरकार को चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।
एम्स में शुरू हो चुका है वर्चुअल पोस्टमार्टम ‘वरटोप्सी’
वर्चुअल पोस्टमार्टम पारंपरिक ऑटोप्सी का एक आभासी विकल्प है, जो स्कैनिंग और इमेजिंग तकनीक के साथ चीर फाड़ के बगैर किया जाता है। शव परीक्षण के बाद विच्छेदन और टांके आदि लगने से परिजनों का दुख और बढ़ जाता है जब उन्हें शव परीक्षण के बाद विच्छेदित और सिले हुए शरीर को देखना पड़ता है। इस अप्रिय स्थिति में परिवर्तन के लिए हाल में ऐसी विधि विकसित की गई है, जिसमें चीर-फाड़ को समाप्त या न्यूनतम किया जा सके, इसे वर्चुअल ऑटोप्सी या वरटोप्सी नाम दिया गया है। एम्स नई दिल्ली में इसी वर्ष से इसे प्रारंभ किया गया है।