भाष्कर के लापता होने के बाद उसके स्वजन रुद्रपुर, हल्द्वानी से लेकर अल्मोड़ा तक उसकी तलाश करते रहे। चाचा विवेक दुम्का का कहना है कि इस मामले की शिकायत सीएम पोर्टल में भी की गई। कमिश्नर दीपक रावत से भी मिले। कहा कि प्रशासनिक अमला और पुलिस उनकी मदद करती तो उनका बेटा जिंदा होता।
भाष्कर के ताऊ चंद्र दत्त दुम्का व चाचा विवेक दुम्का का आरोप है कि पुलिस ने इस मामले में लापरवाही बरती। लापता बालक को ढूंढने में दिलचस्पी नहीं दिखाई। आरोप लगाया कि पुलिस ने भाष्कर को खोज रहे दमुवाढूंगा चौकी इंचार्ज को जांच टीम से हटा दिया था। दो सिपाही के भरोसे हमारे बच्चे की तलाश की जा रही थी। उन्होंने छात्र के साथ अंतिम बार दिखे दो बच्चों पर हत्या का शक जताया है। साथ ही उन बच्चों के परिजन पर धमकाने का आरोप लगाया है।
शव देने में भी देरी करने का लगाया आरोप
सोमवार दोपहर दो बजे भाष्कर का शव बरामद हो गया था। पुलिस शव को रात आठ बजे मोर्चरी लेकर पहुंची। मंगलवार सुबह सात बजे भाष्कर के परिजन मोर्चरी पहुंच गए थे। उधर पुलिस ने दोपहर 12:30 बजे तक पंचनामा नहीं भरा था। दोपहर पौने एक बजे सिपाही पंचनामा लेकर पहुंचा। इसके बाद पोस्टमार्टम शुरू हुआ। परिजनों का कहना था कि हमने पुलिस से कहा कि हमें 20 किलोमीटर दूर जाना है। बावजूद शव देने में काफी देर की गई।
बड़ा सवाल- 51 दिन पानी में रहने से कैसे बचा शव
मामले में परिजन सवाल उठा रहे हैं कि क्या घटनास्थल तक उनका बेटा अकेले गया था। 51 दिन पानी में रहने के बाद भी शव इस हालत में कैसे था। मोर्चरी में परिजन का कहना था कि शव 20 दिन पुराना हो सकता है। पुलिस चाहती तो भाष्कर को सकुशल बरामद किया जा सकता था। भाष्कर अपने घर का इकलौता बेटा था। उसकी दो छोटी बहने हैं। अच्छी पढ़ाई कराने का सपना देखकर माता-पिता ने बेटे को पढ़ने के लिए हल्द्वानी भेज दिया था। माता-पिता का कहना है कि उन्हें पता होता तो वह उसे हल्द्वानी पढ़ने ही नहीं भेजते।