मोहन भगवत ने कहा-
गोरक्षा के नाम पर हिंसा ठीक नहीं, रोहिंग्या मुद्दे पर मानवता के नाम पर हम कोई कीमत नहीं चुका सकते, कोशिशों पर नजर रखनी होगी, ताकि काम पटरी से न उतरे, हालात बदले हैं कश्मीर में, खुराफात करता रहता है पाकिस्तान, हमारे संस्कार खराब हो रहे हैं विदेशी प्रभाव से
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रैली से पहले शस्त्र पूजन किया। इसके बाद उन्होंने पारंपरिक आरएसएस परेड की सलामी ली।
- बता दें कि संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है। संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे।
- आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और उनसे जुड़े लाखों स्वयंसेवक हैं।
नागपुर (एजेंसीज) : आज (शनिवार को) शहर के रेशीमबाग मैदान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने विजयादशमी उत्सव मनाया। इस मौके पर मोहन भागवत ने कहा- “कल जो मुंबई में दुखद घटना हुई, उसको लेकर सबका मन दुखी है। जीवन में ऐसी बातों का सामना करके आगे बढ़ना पड़ता है।”
उन्होंने डोकलाम इश्यू, रोहिंग्या मुद्दा, कश्मीर और दुनिया में भारत की मौजूदा स्थिति पर मोदी सरकार के काम और पॉलिसीज की तारीफ की। उन्होंने कहा- 70 साल में पहली बार दुनिया का भारत की तरफ ध्यान गया है।
सीमा पर हम जवाब दे रहे हैं। डोकलाम विवाद में भी हमने भारतीय गौरव को झुकने नहीं दिया। बीच में सरकार को नसीहतें भी दीं।
गोरक्षा के नाम पर हिंसा ठीक नहीं-भागवत
- मोहन भागवत ने कहा- “गोरक्षा के नाम हिंसा करना ठीक नहीं है, जो हिंसा कर रहे हैं उन्हें डरने की जरूरत है। इसे धर्म से नहीं जोड़ा चाहिए। गोरक्षा के काम में कई धर्म के लोगों से जुड़े हैं। इनमें मुसलमान भी शामिल हैं।”
- “गोरक्षक और गोरक्षा का प्रचार करने वाले मुस्लिम भी हैं, दूसरे संप्रदायों के भी हैं। गाय की रक्षा करने वालों की भी हत्या हुई। यूपी में जिसमें सिर्फ बजरंग दल वाले नहीं मुस्लिम भी शहीद हुए। जो गोरक्षा की आड़ में हिंसा करते हैं, कानून उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा। गोरक्षकों को परेशान नहीं होना चाहिए अपना काम करते रहना चाहिए।”
रोहिंग्या मुद्दे पर मानवता के नाम पर हम कोई कीमत नहीं चुका सकते
- मोहन भागवत ने कहा- ” बांग्लादेश की सीमा पर गायों की तस्करी चलती है, घुसपैठ चलती है।
- मौजूदा वक्त में रोहिंग्याओं की समस्या चल रही है। आखिर उन्हें वहां से क्यों आना पड़ा? दरअसल उनके वहां जिहादियों से संपर्क उजागर हो गए। अगर उन्हें यहां (भारत) बसाया तो न केवल रोजगार पर संकट बनेंगे, बल्कि सुरक्षा के लिए भी खतरा बढ़ेगा।”
- ” मानवता के नाम पर हम अपनी मानवता नहीं खो सकते।”
कोशिशों पर नजर रखनी होगी, ताकि काम पटरी से न उतरे
- मोहन भागवत ने सरकार को नसीहत भी दी। उन्होंने कहा- “लोगों के उत्थान के लिए गैस सब्सिडी, जनधन जैसी कई योजनाएं चली हैं। हमें यह भी ध्यान होगा कि एक जगह अच्छा करने जाएं तो दूसरी जगह गड़बड़ न हो। दूसरे देशों में इस तरह का चल जाता है। लेकिन भारत विविधताओं का देश है। हमको ऐसा आर्थिक तंत्र चाहिए तो बड़े-छोटे व्यापारी, खुदरा व्यापारी सबका भला करे। जब तक हम अपना प्रतिमान (मॉडल) नहीं बना लेते, तब तक हमें दुनिया के साथ चलना होगा।”
- ” सरकार को हर मुद्दे पर लोगों का फीडबैक लेना चाहिए। उन्हें सुनना चाहिए। ताकि काम को और बेहतर और ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके।”
हालात बदले हैं कश्मीर में
- भागवत ने कहा, “कश्मीर की बात करें तो 2-3 महीने पहले लग रहा था कि वहां क्या होगा। लेकिन जिस तरह वहां आतंकियों का बंदोबस्त हुआ, सेना को पूरी ताकत दे दी गई और आतंकियों की शक्तिधारा को बंद कर दिया गया। हमारा कोई शत्रु नहीं लेकिन अपने से शत्रुता रखने वालों को जवाब दिया है।”
- “बीते कई सालों में जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख में विकास हुआ ही नहीं। उनके साथ सौतेला व्यवहार किया गया। कुछ तो भारत स्वतंत्र के बाद दो देश बने- भारत-पाकिस्तान। भारत में सब प्रकार के लोग आए।
- भागवत ने कहा, “राज्य शासन-प्रशासन मिलकर कोशिश करें तो कश्मीर समस्या का जल्द हल हो सकता है। वहां राष्ट्र विरोधी ताकतें अपना खेल खेल रही हैं। केरल, बंगाल की सरकारें हिंसा करने वालों का साथ दे रही हैं। “
- “राजनीतिज्ञों को वोटों की राजनीति करनी पड़ती है। लेकिन समाज उन्हें चुनकर भेजता है। लिहाजा समाज को प्रबुद्ध होना पड़ेगा।
खुराफात करता रहता है पाकिस्तान
- उनका यही सोचना था कि हम अपना-अपनी धर्म-मत मानेंगे। वो अभी तक भारत के नागरिक नहीं बन पाए। जो नागरिक थे, वो आज भी अधिकारों से वंचित हैं। इन समस्याओं का निदान करना पड़ेगा।”
- “हम जानते हैं कि जम्मू-कश्मीर सीमावर्ती राज्य है। पाकिस्तान वहां खुराफात करता रहता है। लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ता है। उनका खेती करना और तमाम चीजें दूभर हो जाती हैं।
- वहां आज भी जैसी स्वास्थ्य सुविधाएं होनी चाहिए, वैसी पहुंची नहीं है। राज्य प्रशासन को इसकी कोशिश करनी चाहिए।”
दुनिया में भारत को अहमियत मिली है
- भागवत ने कहा, “हमारे यहां विदेशी आए और हमने राष्ट्र को खो दिया। लेकिन राष्ट्र की विचारधारा सतत चलती रही। जब सारी बातों जैसे सुरक्षा, अर्थव्यवस्था में संस्कृति झलकती है तो दुनिया में उस देश को मान्यता मिलती है।
- अब गौरव-अभिमान का भाव जगाने की थोड़ी अनुभूति होने लगी है।”
हमारे संस्कार खराब हो रहे हैं विदेशी प्रभाव से
- भागवत ने कहा- “कुशल बकुला जी की हम जन्म शताब्दी भी मना रहे हैं। वे जम्मू-कश्मीर विधानसभा के सदस्य रहे, राज्यसभा के भी मेंबर रहे। बाद में वे मंगोलिया भी गए।
- सिस्टर निवेदिता (स्वामी विवेकानंद की शिष्या) की जन्म जयंती का भी 150वां वर्ष है। उन्होंने भी भारत में गरीबी हटाने और विकास के लिए सर्वस्व दे दिया।”
- “गुलामी में रहकर हमने देश के गौरव को खो दिया। बाहर के लोग हमें बताते हैं, तब हमें पता चलता है।
- विदेशी प्रभाव से हमारे संस्कार खराब हो रहे हैं। हमें आत्मचिंतन से खुद को देखना होगा।
- भगिनी निवेदिता आयरलैंड की थी लेकिन उन्होंने भारत की सेवा करने की ठानी। वे भारतीय समाज के साथ तन्मय हो गईं और समाज में जाग्रति फैलाई।
- राष्ट्र कोई कृत्रिम चीज नहीं है। उसे न तो बना सकता है और न ही बिगाड़ सकता है। राष्ट्र बनाए नहीं जाते, पैदा होते हैं।”
रैली से पहले शस्त्र पूजन किया भागवत ने
- आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने रैली से पहले शस्त्र पूजन किया। इसके बाद उन्होंने पारंपरिक आरएसएस परेड की सलामी ली।
- बता दें कि संघ की स्थापना 27 सितंबर, 1925 को विजयादशमी के दिन मोहिते के बाड़े नामक स्थान पर केशवराव बलिराम हेडगेवार ने की थी। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है। संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे।
- आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और उनसे जुड़े लाखों स्वयंसेवक हैं।