अल्मोड़ा :दुर्लभ फर्न प्रजातियों का जंगल बसाने के बाद अब जैवविविधता से लबरेज अल्मोड़ा जिले के सौनी बिनसर (ताड़ीखेत ब्लॉक) में उत्तराखंड का पहला ‘स्पाइस गार्डन’ यानि मसाला उद्यान जल्द आकार लेगा। इसमें विलुप्ति की कगार पहुंच चुकी गंधरैड़ी, जंबू, फरड़ आदि तमाम दुर्लभ मसाला एवं औषधीय वनस्पतियों को संरक्षित किया जाएगा। इन बहुपयोगी वनस्पतियों की वंशावली भी बढ़ाई जाएगी। खास बात कि यहां हिमालयी राज्य में पाई जाने वाली सभी मसाला प्रजातियों को अनूठा संसार विकसित किया जाने लगा है।
प्रदेश में मसाला एवं औषधीय उपयोग वाली 23 प्रमुख मसाला वनस्पति प्रजातियां हैं। इनमें कुछ किस्में अवैज्ञानिक दोहन व अनियोजित विकास के साथ ही मानवीय दखल से संकट के दौर से गुजर रही हैं। यानि विलुप्त होने लगी हैं। इन बहुपयोगी वनस्पतियों को संरक्षित कर वजूद बचाए रखने तथा व्यावसायिक खेती को बढ़ावा देने के मकसद से वन अनुसंधान केंद्र कालिका (रानीखेत) ने अभिनव प्रयोग किया है। पहले चरण में सौनी बिनसर में करीब पांच हेक्टेयर क्षेत्रफल में राज्य के अनूठे ‘स्पाइस गार्डन’ तैयार किया जा रहा है।
ये मसाला प्रजातियां होंगी खास
वन एवं आमा हल्दी, गंधरैणी परिवार की छिप्पी, जंबू की पांच प्रजातियां, अलसी, भंगीरा, जखिया, पीली लाखौरी मिर्च, अल्मोड़ा पाती (चल्मोड़ी), बड़ी हल्दी, काला जीरा आदि।
बनेगा अध्ययन स्थल, किसानों को होगा लाभ
‘स्पाइस गार्डन’ शोधार्थियों के लिए अध्ययन केंद्र तो बनेगा ही, यहां किसानों को भी मसाला प्रजातियों की खेती के लिए प्रेरित कर प्रशिक्षण दिया जाएगा। ताकि आसपास के ग्रामीण व दूरदराज के काश्तकार यहां से तकनीक हासिल कर व्यावसायिक खेती कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें।
महासंकट में महत्व व मांग बढ़ी
कोरोनाकाल में बहुपयोगी मसाला प्रजातियों का महत्व व मांग बढ़ी है। निश्चित मात्रा में इनका इस्तेमाल सामान्य बुखार से लेकर घातक वायरस से लडऩे की ताकत देते हैं। कई प्रजातियां पाचन तंत्र से लेकर किडनी व लिवर को मजबूती भी देती हैं। मसलन, चल्मोड़ी की चटनी पेट के विकारों को दूर करती है। वन एवं आमा हल्दी एंटीबायोटिक है तो अलसी में प्राकृतिक ओमेगा हृदय रोग आदि में कारगर होती है।
अगस्त को होगा विधिवत शुभारंभ
शोध एवं वनक्षेत्राधिकारी कालिका वन अनुसंधान केंद्र कालिका आरपी जोशी ने बताया कि सौनी बिनसर में राज्य का पहला स्पाइस गार्डन अगस्त पहले सप्ताह में मूर्तरूप ले लगा। शुरुआत में कुछ प्रजातियों की पौध लगाई हैं। आमा हल्दी के बीज बोए हैं जो अंकुरित होने लगे हैं। आठ अगस्त को इसका विधिवत शुभारंभ किया जाना है। उत्तराखंड में पाई जाने वाली सभी 23 प्रजातियों के साथ कुछ अन्य मसाला वनस्पतियां भी इस उद्यान में संरक्षित करेंगे।