अल्मोड़ा। एक ओर पर्यावरण बचाने को प्लास्टिक का विरोध। दूसरी तरफ डस्टबिन व गमलों के रूप में इसी घातक रसायन की बेधड़क बिक्री। पेशे से शिक्षक जमुना प्रसाद तिवारी उर्फ कंटरमैन को यह दोहरी नीति रास न आई। विरोध के बजाय उन्होंने रचनात्मक सोच अपनाई। खाद्य तेल वगैरह के कनिस्तर (आंचलिक बोली कंटर) एकत्र किए। उनमें हरा रंग किया। कूड़ा कचरे के लिए कंटर डस्टबिन तो शोपीस फूल व अन्य पौधों के लिए कंटर गमले बनाए। पहले खुद इस्तेमाल में लाए फिर गांव गांव घूम कर इधर उधर पड़ा कूड़ा एकत्र कर कंटर में भरते चले। स्वच्छत भारत की मुहिम में जमुना मास्साब अब अकेले नहीं गांवों के तमाम पर्यावरणप्रेमी साथ हैं।
जीआइसी बटुलिया (द्वाराहाट ब्लॉक) में तैनात जमुना मास्साब हैं तो जीवविज्ञान के प्रवक्ता। पर पर्यावरण से गहरा लगाव रखते हैं। वह मानते हैं कि पर्यावरण को स्वस्थ रखने में स्वच्छता का बड़ा रोल है। लिहाजा वह शिक्षण कार्य के साथ कूड़ा निस्तारण भी उसी संजीदगी से करते हैं। स्वच्छ भारत अभियान में उनका योगदान कुछ जुदा है। खाद्य तेलों के खाली कनिस्तर कम पड़ें तो वह बाजार से खरीद उन्हें रंगते हैं।
इन दिनों वह सुदूर गांवों में स्वच्छता का संदेश दे रहे। जहां तहां पड़े कूड़े को समेट कंटर डस्टबिन में जमा करते आगे बढ़ते हैं। इससे प्रेरित हो लोग भी कूड़ा बीनने में जुट जाते हैं। जमुना मास्साब के बनाए कंटर डस्टबिन व गमले उपयोग में भी लाने लगे हैं। पर्यावरण व स्वच्छता के लिए बच्चों व ग्रामीणों को मुहिम में जोडऩे के कारण उन्हें राज्यपाल व शैलेश मटियानी पुरस्कार मिल चुका।
यूसर्क ने बढ़ाए कदम
उत्तराखंड विज्ञान शिक्षा व अनुसंधान केंद्र (यूसर्क) ने भी कंटरमैन के मॉडल को अपनाया है। उन्हें सम्मानित कर स्मार्ट ईको क्लब परियोजना के जरिये राज्य में चयनित विद्यालयों में मिशन कंटर लागू करा दिया है। मैती संस्था संयोजक कल्याण रावत, विज्ञान भारती आदि संस्थाएं कंटरमैन को सम्मानित कर चुकी। इन दिनों कंटरमैन जमुना मास्साब सार्वजनिक स्थलों मसलन मंदिर, दुकान, धूणी, ग्रामीण मार्गों के दोनों ओर कंटर डस्टबिन रखने का अभियान चलाए हैं।
वर्ष 2003 से कंटर अभियान
जमुना मास्साब ने 1999 में पिथौरागढ़ में तैनाती ली। सीमांत में पर्यावरण संरक्षण संबंधी कार्यक्रम अभियान चलाए। वर्ष 2003 में जीआइसी द्वाराहाट आए। इको क्लब से जुड़े। प्लास्टिक के डस्टबिन व गमलों से आहत जमुना मास्साब ने कंटर अभियान शुरू किया। इसमें अपने विद्यालय के बच्चों को जोड़ा।
अब कंटर देने वालों में होड़
कूड़े कचरे से नफरत करने वाले जमुना मास्साब ने शुरूआत में 500 कनिस्तर बाजार से खरीदे। उनका मॉडल जिला, मंडल व राज्य के कई विद्यालयों में अपनाया जाने लगा है। तो उन्हें कंटर मुहैया कराने वालों की संख्या बढ़ती जा रही।