महासंकट में बना बेरोजगार, अब लिलियम ने महकाया कारोबार

0
122

अल्मोड़ा। लॉकडाउन से कोरोना की दूसरी लहर तक तमाम लोग बेरोजगार हुए। कुछ प्रवासी वापस महानगरों को लौट चुके। कई अब भी बेरोजगार हैं। वहीं जिले के शीतलाखेत नौला गाव के इस जुनूनी का प्रयोग युवाओं को प्रेरणा दे रहा। वह बेरोजगारी से मायूस नहीं हुआ। बल्कि महासंकट से उपजे हालात को उसने लिलियम की खेती कर अवसर में बदल दिया। नौजवान की बगिया में उगे एशियाटिक प्रजाति के विदेशी फूलों की महक गाजीपुर मंडी तक पहुंचने लगी है। पहले सीजन में कमाई अच्छी हुई तो हौसला बढ़ा। अब उसने लिलियम की ओरियंटल किस्म से आय बढ़ा जिंदगी संवारने की ठानी है। खास बात कि लोगों को फूलों की खेती का तकनीकी प्रशिक्षण भी देने लगा है।

यहां बात हो रही है शीतलाखेत नौला गांव के नरेंद्र सिंह बिष्ट की। वह पिथौरागढ़ में संविदा पर वन विभाग में तैनात था। बीते वर्ष लॉकडाउन में रोजगार छिन गया। वह हताश नहीं हुआ। गाव लौटा और ऐसे फूल उगाने की ठानी जिनकी मांग व महत्व ज्यादा है। उसे पता लगा कि दिल्ली में बड़े सेमिनार में मंचों व सभागारों की सजावट, पीएम या राष्ट्रपति के लिए बुके बनाने में हॉलैंड का लिलियम ही पूछा जाता है। नरेंद्र ने यही जिद पकड़ी और परिणाम सुकून भी दे रहा। ऐसे बढ़ाए कदम

नरेंद्र का जज्बा देख उद्यान विभाग ने मदद दी। एक नाली भूखंड में सौ वर्ग मीटर के दो पॉलीहाउस लगवाए। प्रयोग के तौर पर भीमताल कोल्ड चैंबर से एशियाटिक प्रजाति के लिलियम बल्ब मंगाए। जून आखिर में बल्ब लगाए। अक्टूबर आखिर से नवंबर की शुरूआत में बिक्री को तैयार हो गए। नरेंद्र ने हल्द्वानी तक अपने खर्च से लिलियम के बंच पहुंचाए। फिर रेल से गाजीपुर फूल मंडी भेजे। आय ने बढ़ाया हौसला

पिछले सीजन में नरेंद्र ने एशियाटिक लिलियम के 2000 बल्ब लगाए। एक बल्ब 15 रुपये का बैठा। वहीं बिक्री को तैयार एक स्टिक 30 रुपये में बेची। साथ में ओरियंटल किस्म के बल्ब भी लगाए, जो एशियाटिक से महंगा बिका। उसे करीब 1.20 लाख रुपये की आय हुई। उत्साहित नरेंद्र ने इस बार ओरियंटल लिलियम का रकबा बढ़ा दिया है। वजह, यह सूखने के बाद भी खुशबू देता है। इसकी एक स्टिक 60 रुपये में बिकती है। बल्ब की उम्र डेढ़ से दो वर्ष तक होती है। इन गांवों में देने लगे प्रशिक्षण

स्याहीदेवी, शीतलाखेत, धामस, भांकड़, सल्ला, देवलीखान, कुरचौन कठपुडि़या आदि।

LEAVE A REPLY