यूक्रेन से घर पहुंचे कार्तिकेय, बताया कैसे 10 दिन तक भूखे-प्यासे, जान जोखिम में डालकर पूरी की यात्रा

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रानीखेत: यूक्रेन फिर पेसोचिन बॉर्डर पर फंसे नगरनिवासी कार्तिकेय दीक्षित आखिरकार जोखिमभरे 10 दिन बाद सकुशल स्वदेश लौट आए हैं। इस अवधि में भारतीय तिरंगा छात्रों का सुरक्षा कवच बना रहा। बीते रोज वह अपने करीब 600 साथी मेडिकल छात्रों के साथ रोमानिया पहुंच गए थे, जहां से मंगलवार को हवाई जहाज दिल्ली उतरा। इससे चिंता में डूबे स्वजनों ने बड़ी राहत महसूस की है। खास बात कि भारतीय छात्रों को सकुशल भारत पहुंचाने में रूसी दूतावास का योगदान सराहनीय रहा। पेसोचिन से रसियन सीमा तक वाहनों से पहुंचाने में रसियन एंबेसी ने तत्परता से काम किया। 

बीते पखवाड़ा भारतीय दूतावास के खारकीव छोडऩे संबंधी इमर्जेंसी एडवाइजरी के बाद नगरनिवासी कार्तिकेय करीब 600 साथी मेडिकल छात्रों के साथ बमबारी के बीच लगभग 18 किमी का पैदल सफर तय कर बीती दो मार्च को पेसोचिन पहुंचे थे। चिकित्सक डा. संदीप कुमार दीक्षित के पुत्र कार्तिकेय खारकीव नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं। युद्ध के माहौल में इन सभी भारतीय छात्रों को खुद की सुरक्षा के साथ ही भरपेट भोजन के लिए भी जूझना पड़ा था। 

दूतावास ने किया वाहनों का बंदोबस्त 

यूक्रेन के युद्धक क्षेत्र को पार कर पेसोचिन में तीन दिन तक फंसे कार्तिकेय व अन्य छात्रों के लिए रूसी दूतावास मददगार साबित हुआ। पेसोचिन से सभी रोमानिया पहुंचे। वहां से वाहनों के जरिये रूसी सीमा पर पहुंचाने के बाद हवाई मार्ग से भारत रवाना किया गया। 

तीन मार्च से दिल्ली में डाले थे डेरा 

यूक्रेन में मेडिकल की शिक्षा हासिल कर रहे भारतीय छात्रों के अभिभावकों ने वाट्सएप गु्रप बनाया था। इसी के माध्यम से सभी बीते तीन मार्च को दिल्ली पहुंच गए थे। रूसी दतावास के लगातार संपर्क में बने रहे और आखिर में सभी सकुशल स्वदेश पहुंच गए। 

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ संदीप दीक्षित ने बताया कि भगवान की कृपा से बच्चे सकुशल देश लौट आए हैं। और कुछ नहीं चाहिए। पेसोचिन में तीन दिन फंसे रहे। कार्तिकेय लगातार संपर्क में रहा। बमबारी के बीच वहां से बचकर निकलना दूभर होता जा रहा था। रूसी व भारतीय दूतावास की पहल पर वाहनों का बंदोबस्त होने पर छात्रों को रसियन बॉर्डर भेजा गया। युद्ध के माहौल में सुरक्षित निकलना बेहद जोखिम भरा था।

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