अल्मोड़ा (संवाददाता) : भाजपा के वरिष्ठ नेता व सांसद डा. मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि योग शास्त्र का संबंध आत्मानुभूति से होता है। प्राचीन चिकित्सा पद्धति हर प्रकार के व्याधियों को समाप्त करने में कारगर रही थीं। मर्म चिकित्सा पद्धति एवं योग द्वारा ही हम अपने मन, आत्मा एवं विचारों पर नियंत्रण स्थापित कर सकते हैं। योगशास्त्र प्राणियों को निरंतरता एवं स्थिरता दोनों प्रदान कर उनकी धर्म एवं आत्मशक्तियों को जागृत करने का साधन है।
भौतिकी के विख्यात पूर्व प्रोफेसर डा. जोशी ने कुविवि सोबन सिंह जीना परिसर के गणित विभाग में योग विभाग द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘मर्म चिकित्सा एवं रोगों के उपचार’ कार्यशाला के समापन अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए कहा कि आज ज्यादातर एलोपैथिक पद्धति से उपचार किया जा रहा है। वह न केवल महंगी है बल्कि यह शरीर को नुकसान भी पहुंचाती है, लेकिन हमारी पुरातन मर्म चिकित्सा पद्धति न केवल धन और समय को बचाती है, बल्कि किसी भी प्रभाव के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने में सहायक सिद्ध होती है। उन्होंने कहा कि योगशास्त्र आत्मानुभूति की शक्ति को उजागर कर मानव को अपने धर्म, संस्कार एवं दर्शन का ज्ञान कराने में सक्ष्म साबित होता है। वर्तमान में ह्यूमन जीनोम के अध्ययन से हमारी पुरातन चिकित्सा पद्धति के महत्व प्रकट हो रहे हैं। इस चिकित्सा पद्धति के विकास से सबसे ज्यादा नुकसान मेडिसनल इंडस्ट्री के क्षेत्र में काम कर रहीं कम्पनियों को हो रहा है।
उन्होंने वैद्यों का जिक्र करते हुए कहा कि मर्म चिकित्सा में वैद्य नाड़ी देख कर ही सारी बीमारी को बता देते थे। उन्होंने कहा कि वर्तमान परिपेक्ष्य में इसके महत्व को अब पश्चिमी देश भी मानने लग गए हैं। आज पश्चिमी देश हमारी चिकित्सा पद्धति का व्यापक अध्ययन एवं अनुसंधान करने में जुटे हुए हैं। योग पद्धति को समझने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान होना नितांत आवश्यकता है। इस मौके पर मर्म चिकित्सा डा. सुनील कुमार जोशी ने उपचार की विविध पद्धतियों के बारे में जानकारी दी। कार्यक्रम को आवासीय विवि कुलपति डा. होशियार सिंह धामी, आरएसएस प्रांतीय प्रचारक देवेंद्र, भाजपा जिलाध्यक्ष गोविंद सिंह पिलख्वाल, डा. देव सिंह पोखरिया, प्रो. दया पंत, प्रो. विजय पांडे, प्रो अजय पांडे, नवीन भट्ट समेत तमाम नेताओं ने संबोधित किया।