गोपेश्वर(चमोली) : उत्तराखंड की चीन सीमा पर स्थित चमोली जिले की नीति घाटी का भूगोल विषम है, लेकिन यहां के दर्जन भर गांवों के ग्रामीणों का हौसला हिमालय सा बुलंद है। यहां के ग्रामीण भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के जवानों के साथ सीमा की सुरक्षा कर रहे हैं।
चीन कई बार कर चुका है घुसपैठ करने की कोशिश
बाड़ाहोती में चीन कई बार घुसपैठ करने की कोशिश कर चुका है। चीनी सैनिक यहां रहने वाले ग्रामीणों के मवेशियों को खदेड़ देते हैं और कई बार उनका सामान भी नष्ट कर देते हैं, लेकिन ग्रामीण मवेशियों के साथ इस क्षेत्र में जाते हैं। आइए जानते हैं इस क्षेत्र और यहां के वासियों के बारे में…
- उत्तराखंड पलायन की पीड़ा से जूझ रहा, लेकिन यहां के सीमांत क्षेत्रों में गांव आज लोगों से गुलजार हैं।
- चमोली की नीति घाटी के गमसाली गांव तक पहुंचने के लिए जोशीमठ से 75 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है।
- गमसाली गांव में 200 परिवार रहते हैं। नीती, बाम्पा , फरख्या, मेहरगांव और कैलाशपुर में भी अच्छी आबादी में लोग रहते हैं।
- इनकी आजीविका का मुख्य साधन खेती और पशुपालन है।
- इन इलाकों में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं। जनजाति समुदाय के लोग अपनी परंपरा से प्यार करते हैं। इसीलिए देश दुनिया में नौकरी कर रहे यहां के लोग अपनी माटी से दूर नहीं रहते।
- स्थानीय लोग बताते हैं कि जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो नीती घाटी के गांवों को इसकी जानकारी नहीं मिली। क्योंकि तब संचार के साधनों की कमी थी।
- यह सूचना घाटी में 20 अगस्त को पहुंची और उस दिन यहां आजादी का जोरदार जश्न मनाया गया।
- दीपावली की तरह हर घर में दीपक जलाए गए और कई पकवान बनाए गए।
- बस तभी से यहां की परंपरा है कि 15 अगस्त के दिन हर साल आसपास के सभी गांवों के लोग पारंपरिक वेशभूषा में गमसाली गांव में एकत्र होंगे और उत्सव की तरह जश्न मनाएंगे।
- तिरंगा फहराने के बाद होता है सामूहिक भोज
15 अगस्त के दिन नीति घाटी के हर गांव से जुलूस अपनी झांकी के साथ गमसाली गांव पहुंचता है। सभी लोग गम्फूधार नामक स्थान पर जाते हैं और तिरंगा फहराते हैं। इसके बाद सामूहिक भोज होता है।
बाड़ाहोती में 10 बार घुसपैठ कर चुका चीन
उत्तराखंड में चीन से सटी चमोली जिले की मलारी घाटी में स्थित बाड़ाहोती में चीन वर्ष 2014 से 2018 तक 10 बार घुसपैठ कर चुका है। हालांकि यहां हर बार भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) के जवानों ने उनके मंसूबों को नाकाम कर दिया है।
बाड़ाहोती 10 किलोमीटर लंबा और तीन किलोमीटर चौड़ा एक चारागाह है। स्थानीय लोग यहां अपने मवेशी लेकर आते हैं। इस दौरान कई बार उनका चीनी सैनिकों से सामना भी हुआ है।
उत्तराखंड में चीन से सटी 345 किलोमीटर लंबी सीमा में से करीब 100 किलोमीटर का हिस्सा चमोली जिले में है। मलारी जोशीमठ से 62 किमी दूर है और यहां से 40 किमी दूर फारवर्ड पोस्ट रिमखिम है।
यहां तक सड़क जाती है। इससे आगे बाड़ाहोती के लिए तीन किमी का पैदल रास्ता है। 1962 से पहले यहां के लोगों के तिब्बत से व्यापारिक रिश्ते थे। बाड़ाहोती चारागाह में तब मंडी लगती थी।
पहली बार 1959 में हुई घुसपैठ
चीन ने पहली बार बाड़ाहोती में वर्ष 1959 में घुसपैठ की थी। बाड़ाहोती से तिब्बत के तुनजन ला की महज चार किमी दूर है। यहां तक चीन के सैनिकों के लिए आवाजाही आसान है।