अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस..टिकट काटते-काटते समझने लगे दिव्यांगों की भाषा, परिचालक ने ऐसे की दोस्ती

0
18

दिव्यांगों के मन की बात समझने के लिए विशेष प्रशिक्षण लिया जाता है, लेकिन दून में स्मार्ट सिटी की बस के परिचालक गोविंद ने बगैर प्रशिक्षण ही दिव्यांगों के मन की भाषा सीख ली है। परिचालक ने दिव्यांग बच्चों के साथ रोज 15 किमी का सफर करते हुए अपने व्यवहार में ऐसा बदलाव किया कि अब वह इशारे समझ जाते हैं और उनसे उन्हीं की भाषा में बात करते हैं।

दरअसल, आईटी पार्क के पास स्थित बजाज इंस्टीट्यूट ऑफ लर्निंग फॉर डेफ के करीब 35 मूकबधिर छात्र आईएसबीटी से दून स्मार्ट सिटी की बस से स्कूल जाते हैं। शिक्षिका पारुल जायसवाल ने बताया, बस के परिचालक गोविंद को छात्रों के इशारे समझ नहीं आते थे। इससे उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता था, लेकिन यात्रा करते-करते परिचालक ने सांकेतिक भाषा सीख ली। अब वह छात्रों के साथ उनकी ही भाषा यानी इशारों में बात करते हैं।

स्मार्ट सिटी की जन संपर्क अधिकारी प्रेरणा ध्यानी ने बताया कि बस के परिचालक ने दिव्यांग बच्चों की भाषा सीख ली है, इससे बच्चों को काफी सहूलियत मिली है। कुछ और परिचालकों को भी दिव्यांग बच्चों की भाषा सिखाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

बच्चों को समझने-जानने में इशारा ही सहारा

विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ. पुनीत बासूर ने कहा, मूकबधिर छात्रों को समझने और जानने के लिए सांकेतिक भाषा ही एक सहारा है। एक इशारा गलत हुआ तो उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। ऐसे में बस के परिचालक सांकेतिक भाषा समझता है तो छात्रों को सीधा लाभ मिल रहा है।

नए परिचालक को दिखाना पड़ता है पुराना टिकट

शिक्षिका पारुल जायसवाल ने बताया, जिस दिन बस में नया परिचालक आता है तो समस्या होती है। नया परिचालक इशारों में बात को नहीं समझाता, तब छात्र पुराना टिकट दिखाकर गंतव्य की जानकारी देते हैं। कोई छात्र पुराना टिकट नहीं ला पाता तो उसे परेशानी का सामना करना पड़ता है।

LEAVE A REPLY