ऋषिकेश। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी विधिवत शुरू हो गई है। इस थैरेपी के शुरू होने से कोरोना को पराजित कर चुके मरीज, अन्य कोरोना संक्रमितों की जीवन रक्षा में अहम भूमिका निभा सकते हैं।
एम्स के डॉ. प्रसन्न कुमार पांडा ने बताया कि एम्स में भर्ती एक कोरोना संक्रमित मरीज को दिए जा रहे अन्य तरह के उपचार से लाभ प्राप्त नहीं हो रहा था। लिहाजा इस मरीज में कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा थैरेपी प्रारंभ की गई है। एम्स प्रशासन ने बताया कि पिछले माह 27 जुलाई, 29 जुलाई व इसी माह एक अगस्त को तीन कोरोना संक्रमण से ठीक हुए मरीजों (कॉनवेल्सेंट रक्तदाताओं) से तीन यूनिट कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा एकत्रित किया गया था। उन्होंने बताया कि राज्य में राजकीय मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के बाद एम्स ऋषिकेश इस प्रक्रिया को शुरू करने वाला दूसरा संस्थान है।
एम्स निदेशक पद्मश्री प्रो. रवि कांत ने बताया कि जब कोई व्यक्ति किसी भी सूक्ष्म जीव से संक्रमित हो जाता है, तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसके खिलाफ लड़ने के लिए एंटीबॉडी बनाने का काम करती है। यह एंटीबॉडीज बीमारी से उबरने की दिशा में अपनी संख्याओं में वृद्धि करती हैं और वायरस के समाप्त होने तक अपनी संख्या में सतत वृद्धि जारी रखती हैं।
कोरोना संक्रमित ठीक होने के 28 दिन बाद कर सकता है प्लाज्मा डोनेट
ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन एंड ब्लड बैंक विभागाध्यक्ष डॉ. गीता नेगी ने बताया कि कोई भी कोरोना संक्रमित व्यक्ति जो निगेटिव आ चुका हो, वह 28 दिन बाद प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। जिसके लिए एक एंटीबॉडी टेस्ट किया जाएगा तथा रक्त में एंटीबॉडी का लेवल देखा जाएगा। यह एंटीबॉडी प्लाज्माफेरेसिस नामक एक प्रक्रिया द्वारा प्लाज्मा के साथ एकत्र किए जाते हैं।
इस प्रक्रिया में पहले से संक्रमित होकर स्वस्थ हुए व्यक्ति का पूरा रक्त प्लाज्मा तथा अन्य घटक एफेरेसिस मशीन के माध्यम से अलग किया जाता है। प्लाज्मा (एंटीबॉडी युक्त) को कॉनवेल्सेंट प्लाज्मा के रूप में एकत्रित किया जाता है और अन्य लाल रक्त कोशिकाएं, श्वेत रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स जैसे अन्य घटक प्रक्रिया के दौरान रक्तदाता में वापस आ जाते हैं। इस प्रक्रिया में प्लाज्मा दान करने वाले और प्लाज्मा डोनर के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है।