अफगानिस्तान में अचानक बदले हालात, ब्रिटिश-यूएस एजेंसियों ने दिया साथ; स्थानीय ने खींचे हाथ

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देहरादून। अफगानिस्तान में अचानक बदले हालात ने वहां कार्यरत कंपनियों के जज्बात भी बदल दिए। ब्रिटिश और अमेरिकी एजेंसियों के साथ कार्यरत भारतीयों को तो जैसे-तैसे अपने वतन पहुंचाया जा रहा है, लेकिन स्थानीय कंपनियों ने जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ दिया है। जिससे उनके साथ जुड़े भारतीय समेत तमाम मुल्कों के लोग अधर में हैं। उनके रहने-खाने की जिम्मेदारी कंपनियां नहीं उठा रही हैं। बड़ी संख्या में ऐसे लोग एयरपोर्ट पर डटे हुए हैं। इसी उम्मीद में कि जल्द ही कोई विमान उन्हें अपने देश ले जाएगा।

काबुल में ब्रिटिश एंबेसी की सुरक्षा में तैनात देहरादून के गलज्वाड़ी गांव के दीपक अधिकारी ने अपने घर पहुंचकर अफगानिस्तान के हालात बयां किए। बताया कि उन्हें तालिबानियों के कब्जे के बाद कुछ दिक्कतें तो आईं, लेकिन ब्रिटिश अधिकारी उन्हें आश्वस्त करते रहे। हालांकि, तालिबानियों के काबुल पर पूरी तरह कब्जा करने के बाद ब्रिटिश एंबेसी में अफरातफरी मच गई। अधिकारियों ने उन्हें एक घंटे में काबुल से निकलने को कहा।

हालांकि, वहां से सभी सकुशल निकल गए। लेकिन उनके कुछ परिचित जो कि अफगानिस्तान की स्थानीय कंपनियों कार्यरत थे, उनकी स्थिति चिंताजनक बनी है। दीपक बताते हैं कि जब उन्होंने फोन व मैसेज के जरिये उनसे संपर्क किया तो पता चला कि उनकी कंपनियां उन्हें छोड़कर चली गई हैं। अब उनके सामने खाने-पीने और रहने का संकट है। साथ ही उनकी वतन वापसी भी अब पूरी तरह भारत सरकार की पहल पर टिकी है। वह काबुल एयरपोर्ट के आसपास यह आस लगाए फिर रहे हैं कि भारतीय विमान उन्हें अपने साथ ले जाएगा।

दर-दर भटक रहे 150 भारतीय

देहरादून निवासी अनुराग गुरुंग समेत करीब 150 भारतीय काबुल एयरपोर्ट के पास ठहरे हुए हैं। अनुराग के भाई बब्बू गुरुंग ने बताया कि वह लगातार अपने भाई से संपर्क कर रहे हैं, लेकिन स्थिति चिंताजनक बनी हुई है। उनके भाई के साथ करीब 150 भारतीय हैं, वे सभी काबुल एयरपोर्ट के पास ही हैं।

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