अभिमन्यु ईश्वरन के लिए पिता ने जमा-पूंजी खर्च कर बनाई क्रिकेट एकेडमी, खुद ‘कोच’ बन संजोया बेटे का सपना

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देहरादून : सफलता अकेले नहीं आती। उसके साथ सपने, समर्पण और संघर्ष भी जुड़े होते हैं। बंगाल के लिए खेलने वाले उत्तराखंड मूल के क्रिकेटर अभिमन्यु ईश्वरन की सफलता में जितना श्रेय उनके सपने और जुनून को जाता है, उतना ही योगदान उनके पिता के समर्पण व संघर्ष का भी है।

अभिमन्यु भारतीय टेस्ट टीम में चयन के बाद भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण भले न कर पाए हों, मगर अपने शानदार खेल से वह टीम इंडिया की प्लेइंग इलेवन में एंट्री की चौखट पर खड़े हैं। मंगलवार को रणजी ट्राफी में एक और शतक जड़कर उन्होंने अपने इस दावे को और पुख्ता कर दिया।

अभिमन्यु के पिता ने बनवाया है यह मैदान
रोचक बात यह है कि अभिमन्यु ने दून के जिस मैदान पर यह शतक जड़ा, उसका निर्माण उनके ही पिता आरपी ईश्वरन ने बेटे के सपने को साकार करने के लिए कराया था।

पेशे से चार्टेड अकाउंटेंट (सीए) आरपी ईश्वरन ने बेटे अभिमन्यु के क्रिकेट के प्रति जुनून को देखते हुए जमा पूंजी खर्च कर अंतरराष्ट्रीय सुविधाओं से युक्त अभिमन्यु क्रिकेट एकेडमी तैयार कर डाली। यहीं से क्रिकेट की बारीकियां सीख कर दायें हाथ के सलामी बल्लेबाज अभिमन्यु भारतीय टेस्ट टीम तक पहुंचे हैं।

इसलिए खेलते हैं बंगाल से
वर्ष 1995 में जन्मे 27 वर्षीय अभिमन्यु के पिता आरपी ईश्वरन ने बताया कि उन्होंने पूरे देश में क्रिकेट का ग्राफ चेक करने के बाद अभिमन्यु को बंगाल से खिलाने का निर्णय किया था।

उनके एक दोस्त ने भी बताया था कि बंगाल में अच्छा क्रिकेट होता है। इसके अलावा उस दौरान उत्तराखंड को बीसीसीआइ से मान्यता भी नहीं मिली थी। ऐसे में उत्तराखंड के खिलाड़ी दूसरे राज्यों का रुख कर रहे थे।

खेल के लिए नहीं की पढ़ाई की चिंता
इसे बेटे के हुनर पर विश्वास कह लीजिए या उसके सपने को साकार करने का समर्पण कि आरपी ईश्वरन ने आम अभिभावकों की तरह अभिमन्यु पर पढ़ाई को लेकर कभी दबाव नहीं बनाया। अभिमन्यु की प्रतिभा और क्रिकेट को लेकर उनके जुनून को पहचानते हुए आरपी ईश्वरन ने उन्हें न सिर्फ खेलने के लिए प्रोत्साहित किया, बल्कि उन्हें देश के हर कोने में क्रिकेट खिलाया।

बेटा प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में खेलने से चूक न जाए, इसके लिए मैच से घंटों पहले आयोजन स्थल पर बेटे को लेकर पहुंच जाते थे, फिर इसके लिए हवाई सफर ही क्यों न करना पड़ता। उन्होंने बताया कि खुद अभिमन्यु के खेल की समीक्षा करते थे। उनके हर मैच का रिपोर्ट कार्ड तैयार करते थे।

उनकी बल्लेबाजी के वीडियो देखकर आकलन करते थे कि वह कैसे आउट हुए और किस तरह अपने खेल को बेहतर बना सकते हैं। बेटा भी पिता के विश्वास पर खरा उतरा। हालांकि, अपनी क्रिकेट यात्रा के चलते अभिमन्यु छठी कक्षा के बाद स्कूल नहीं जा पाए।

बेटे के खेल में अड़चन न आए, इसलिए बना डाली क्रिकेट एकेडमी
आरपी ईश्वरन ने बताया कि वह खुद भी एक क्रिकेटर रहे हैं। बेटे के जुनून को देखकर क्रिकेट के प्रति उनका प्रेम फिर से जाग उठा। उस समय देहरादून में आधुनिक सुविधाओं से युक्त एक भी क्रिकेट स्टेडियम या मैदान नहीं था। ऐसे में अभिमन्यु की प्रैक्टिस में अड़चन आ रही थी।

इसके लिए वर्ष 2005 में उन्होंने अपनी जमा-पूंजी से अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं वाली अपनी क्रिकेट एकेडमी बना डाली। उसका नाम बेटे के नाम पर अभिमन्यु क्रिकेट एकेडमी रखा। अभिमन्यु ने यहीं से क्रिकेट का कखग सीखा।

अभिमन्यु ने इसी मैदान पर क्रिकेट का ककहरा सीखा और अब नाबाद शतक लगाया। बेटे को यहां खेलता देख खुशी हुई, लेकिन सपना तब साकार होगा, जब अभिमन्यु भारत के लिए खेलते हुए शतक लगाएगा।- आरपी ईश्वरन, अभिमन्यु ईश्वरन के पिता

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