आपातकाल 1975: इतिहास का काला अध्याय नरक से भी बुरा, फिर भी जेल में लगाते थे शाखाः रणजीत सिंह ज्याला

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देहरादून। 25 जून 1975 को भारत में आपातकाल घोषित था। देश में आपातकाल के दौरान कई लोगों को संघर्ष की लड़ाई का सामना करना पड़ा। नागरिक अधिकारों को समाप्त कर मनमानी चलाई गई। साथ ही आपातकाल के दौरान कांग्रेस विरोधियों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल में डाला गया। एैसे ही आपातकाल संघर्ष की गाथा रणजीत सिंह ज्याला , विभाग प्रचार प्रमुख, संपादक हिमालय हुंकार ने बताई।

संपादक रणजीत सिंह ज्याला ने आपातकाल के दौरान उनके साथ घटी घटनाओं को एक अंधकार का युग जैसा बताया। उन्होंने बताया कि उनके साथ जेल में जितने भी लोग थे उनको ये नहीं पता था कि कबतक इस जेल में एैसी हालत में रहना होगा। उन्होंने बताया की उनको और उनके साथी धर्म सिंह को पिथौरागढ़ से 14 दिसंबर 1975 को एक साथ पुलिस द्वारा पकड़ लिए गया। जंहा वो कभी उन्हें पिथौरागढ़ की लाॅकअप में रखा जाता तो कभी अलमोड़ा जेल ले जाया जाता था।

उन्होंने पिथौरागढ़ के लाॅकअप को बिलकुल नरक जैसा बताया जिसमें चोरी, हत्या, बलात्कार इस तरह के जितने भी कैदी थे उन सबके साथ उनको उसी एक लाॅकअप में बंद करके रखा जाता था । उन्होंने बताया की लाॅकअप के अंदर जो शौचालय की व्यवस्था थी वह बेहद खराब थी , शौच में जैसे ही पानी डालो तो वह कमरों के अंदर आ जाता था। उन्होंने कहा की जेल में बिताया उनका समय उनके लिए बहुत कठिन और बड़ा पिड़ा का कालखंड रहा । साथ ही इस आपातकाल की घड़ी में उन्हें यह नहीं पता था कि कब इन सबका समाधान किया जाएगा और कब इस जगह से मुक्ति मिल पाएगी।

उन्होंने बताया उनपर और उनके साथी पर सबसे पहले डीआईआर का मुकदमा चला। पुलिस ने उन्हें इस अपराध पर पकड़ा था कि वह इन्दिरा गांधी की सरकार के खिलाफ परचे बांट रहे हैं। साथ ही नारे लिख रहे हैं। उनके और उनके साथी पर बाद में मिसा एक्ट भी लगा दिया गया। जिसमें उन्हें मिसा लगाने के बाद अल्मोड़ा जेल में ही रखा गया जंहा उन्हें ये नहीं पता हो पाता था कि कल क्या होगा। साथ ही रोज नई-नई घटनाएं और अत्याचारों के समाचार सुनाई पड़ते थे, जिनमें कभी बरेली जेल में कार्यकताओं के साथ इस तरह का व्यवहार किया गया , तो कहीं नैनीताल जेल में एैसा हुआ, इस तरह की खबरें सूनाई पड़ती थी। उन्होंने बताया कि अल्मोड़ा जेल में भी बहुत सारे प्रतिबंध थे साथ ही उन्होंने इस जेल के काल को नरक सा जीवन बताया ।

बता दें आज से कई साल पहले देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था, जिसे भारतीय राजनीति के इतिहास का काला अध्याय भी कहा जाता है। 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल की घोषणा की गई, जो 21 मार्च 1977 तक लगी रही। उस दौरान तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली सरकार की सिफारिश पर भारतीय संविधान की धारा 352 के अधीन देश में आपातकाल की घोषणा की थी।

स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादस्पद काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए थे। इसे आजाद भारत का सबसे विवादास्पद दौर भी माना जाता है। वहीं अगले सुबह यानी 26 जून को समूचे देश ने रेडियो पर इंदिरा गांधी की आवाज में आपातकाल की घोषणा के बारे में सुना। आपातकाल के पीछे कई वजहें बताई जाती है, जिसमें सबसे अहम है 12 जून 1975 को इलाहबाद हाईकोर्ट की ओर से इंदिरा गांधी के खिलाफ दिया गया फैसला।

कठिन  घड़ी में भी पैदा किए मस्ती का वातावरण

रणजीत सिंह ज्याला ने बताया कि वह स्वयं सेवक थे और इस कठिन काल में भी वह सुबह-शाम शाखाएं लगाते थे और एैसे बुरे हालातों में भी मस्ती का वातावरण पैदा किया करते थे । उन्होंने बताया कि उन्होंने आपातकाल के दौरान भी अपना आत्मबल बनाए रखा । इसी तरह उन्होंने जेल में साड़े  सोहला महीने काटे (14 दिसंबर 1975 से 21 मार्च 1977 तक) । उन्होंने बताया कि जब देश से इमरजेंसी हटी और चुनाव हो गए उसके बाद परिणाम आने के बाद उन्हें जेल से रिहा किया गया ।

 

प्रोफाइलः रणजीत सिंह ज्याला

वर्तमान मेंः विभाग प्रचार प्रमुख, संपादक हिमालय हुंकार, देहरादून

पूर्व मेंः पूर्ण कालिक संघ प्रचारक ‘1975-1980’

आपातकाल में जेल की अवधि 14 दिसंबर 1975-1977

अल्मोड़ा जेल में डीआईआर और मिसा में बंदः 16.5 महिने

पत्रिका रास्ट्रदेव, संपादक, मेरठः 1991-2000

विशेष कार्याधिकारी, मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी, उत्तराखंड सरकारः 2001-2014

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