कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इंटरनेट मीडिया पर सफरनामा कालम शुरू किया है। इसके पहले लेख में उन्होंने लिखा है कि पृथक राज्य उत्तराखंड के आंदोलन में वह मौन नहीं थे। दिल्ली में कांग्रेस के तत्कालीन बड़े नामों में एक मात्र वह सक्रिय व्यक्ति थे।
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने इंटरनेट मीडिया पर ‘सफरनामा’ कालम शुरू किया है। इसके पहले लेख में उन्होंने लिखा है कि पृथक राज्य उत्तराखंड के आंदोलन में वह मौन नहीं थे। दिल्ली में कांग्रेस के तत्कालीन बड़े नामों में एक मात्र वह सक्रिय व्यक्ति थे।
उन्होंने लिखा कि आमतौर पर प्रचलित है कि मैं उत्तराखंड राज्य के समर्थन में नहीं था। इसका एक बड़ा कारण लंबे समय तक कांग्रेस पार्टी का उत्तर प्रदेश के विभाजन के विरोध में रहना है। जब राज्य आंदोलन चरम पर था, मैं दिल्ली में कांग्रेस के तत्कालीन बड़े नामों में एक मात्र सक्रिय व्यक्ति था, जो आंदोलन के प्रश्न पर मौन नहीं था। मैं कुछ न कुछ कह रहा था व कर रहा था।
दूसरा बड़ा कारण यह भी था कि प्रारंभ में अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र ही राज्य आंदोलन का केंद्र बिन्दु था, सभी महत्वपूर्ण नेता स्वर्गीय डॉ. डीडी पंत, जसवंत सिंह बिष्ट, स्वर्गीय विपिन चंद्र त्रिपाठी, पूरन सिंह डंगवाल, काशीसिंह ऐरी, शमशेर सिंह बिष्ट, पीसी तिवारी, प्रताप सिंह बिष्ट, नवीन मुरारी, नारायण सिंह जंतवाल आदि की राजनीति का केंद्र बिन्दु भी यही क्षेत्र था। केवल स्वर्गीय इंद्रमणी बड़ोनी व दिवाकर भट्ट टिहरी जनपद से थे। कांग्रेस, भाजपा के बाद उक्रांद तीसरी शक्ति के रूप में इसी क्षेत्र में प्रभावी था और अल्मोड़ा उस समय जनआंदोलनों का गढ़ था। कांग्रेस सत्तारूढ़ दल था, मुझे अपनी व पार्टी की राजनीति के रक्षार्थ इन सब महानुभावों से जूझना पड़ता था। स्वभाविक रूप से मेरा नाम राज्य आंदोलन के विरोधियों में सबसे ऊपर लिखा जाता रहा। प्रारंभिक तथ्य इस आम धारणा के विपरीत है।