71 फीसदी वन भूभाग वाला उत्तराखंड जैव विविधता के लिए मशहूर है। यहां अतीस, वन ककड़ी, गंदरैणी, कुटकी, वन हल्दी, थुनेर, मीठा विष, जटामासी समेत कई दुर्लभ किस्म की वनस्पतियां बहुतायत में मौजूद हैं, जिनका किसी न किसी रूप में औषधीय महत्व है। लंबे समय से बड़े पैमाने पर इन वनस्पतियों का अनियंत्रित दोहन हो रहा है। इस कारण इन वनस्पतियों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है।गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल अल्मोड़ा के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट के अनुसार वन ककड़ी, गदरैणी, कुटकी, थुनेर, अतीस, मीठा विष, वन हल्दी समेत अन्य कई वनस्पतियों का बड़े पैमाने पर हो रहा अनियंत्रित दोहन चिंताजनक है। इससे जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंच रहा है।पिछले कुछ सालों में इन वनस्पतियों के अनियंत्रित दोहन में बड़ी तेजी आई है। इस कारण उत्तराखंड में यह वनस्पतियां कम होते जा रही हैं। दोहन पर रोक नहीं लगाई तो भविष्य में यह विलुप्ति के कगार पर पहुंच जाएंगी।
उन्होंने कहा कि जैव विविधता को पहुंच रहे नुकसान के कारण जंगलों में जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास नष्ट हो रहे हैं। उन्हें जंगलों में खाने को कुछ नहीं मिल रहा है। इस कारण जानवर आबादी की ओर रुख कर रहे हैं। दुर्लभ वनस्पतियों की ऐसी प्रजातियों को बचाने और संवर्धन करने का काम वन प्रभागों के जरिये हो सकता है।
गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी-कटारमल अल्मोड़ा के जैव विविधता संरक्षण एवं प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आईडी भट्ट ने कहा कि जैव विविधता को बचाने के लिए स्कूलों में हर्बल गार्डन बनाए जाने चाहिए। साथ ही किसानों को औषधीय उत्पादों की खेती करने के लिए प्रोत्साहित करना होगा।
जंगलों में अधिक से अधिक पौधे लगाने के साथ ही वन संरक्षण में लोगों की सहभागिता बढ़ानी होगी। जंगलों में फलदार पौधे लगाने को प्राथमिकता देनी होगी।