देहरादून। विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले उत्तराखंड में औद्योगिक विकास को गति देने की कोशिश में सरकार जुटी हुई है। इस कड़ी में अब सिंगल विंडो सिस्टम को अधिक सरल व प्रभावी बनाने के साथ ही बड़े उद्योगपतियों से सीधे संवाद कर उन्हें राज्य में आकर्षित करने का निर्णय लिया गया है। सरकार की इस पहल की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन पिछले अनुभवों को देखते हुए इस दिशा में पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाने की दरकार है।
औद्योगिक विकास के नजरिये से देखें तो राज्य में देहरादून, हरिद्वार व ऊधमसिंह नगर जिले ही उद्योगों के लिए जाने जाते हैं। शेष जिलों में छिटपुट रूप से ही उद्योग हैं और वे भी मैदानी क्षेत्रों में ही। पर्वतीय जिले तो एक प्रकार से उद्योगविहीन ही हैं। ऐसा नहीं कि पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग चढ़ाने के लिए कसरत न हुई हो।
पूर्व में तत्कालीन मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी के कार्यकाल में तो इसके लिए बाकायदा नीति तक बनाई गई। नीति में पहाड़ों में ऐसे उद्योगों की स्थापना पर जोर दिया गया था, जो यहां की पर्यावरणीय परिस्थितियों के अनुकूल हों। बावजूद इसके यह मुहिम खास असर नहीं छोड़ पाई। असल में पलायन का दंश झेल रहे पर्वतीय इलाकों में उद्योग स्थापना के पीछे स्थानीय निवासियों को रोजगार मुहैया कराने की मंशा छिपी है। पलायन आयोग की ही रिपोर्ट बताती है कि गांवों से निरंतर हो रहे पलायन के पीछे सबसे बड़ा कारण रोजगार के अवसर न होना हो।
उद्योग स्थापित होंगे तो स्थानीय निवासियों को रोजगार मिलेगा और वे जड़ों से दूर नहीं होंगे। अब जबकि चारधाम आल वेदर रोड, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, भारतमाला परियोजना में आवागमन के साधन सरल व सुगम होने जा रहे हैं तो पहाड़ में औद्योगिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। कहने का आशय यह कि जब आधारभूत ढांचा खड़ा हो रहा है तो उसका लाभ उठाया जाना चाहिए।
पर्वतीय क्षेत्रों में उद्योग लगेंगे तो इससे मैदानी क्षेत्रों में जन दबाव भी कम होगा। राज्य में उद्योग तेजी से विकसित हों, इसके लिए सरकार को पूरी गंभीरता के साथ कदम उठाने होंगे। मौजूदा भाजपा सरकार के कार्यकाल में प्रदेश में पहला इन्वेस्टर्स समिट हुआ था, जिसमें उद्योग जगत ने यहां खासी रुचि दिखाई थी। तब सवा लाख करोड़ रुपये के एमओयू साइन हुए थे। इस दिशा में भी पड़ताल करने की जरूरत है। साथ ही उद्यमियों को सुविधाएं देने के साथ ही सिस्टम को सरल, सुगम बनाना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार इस दिशा में गंभीरता से मंथन कर पहल करेगी।