उत्तराखंड में 2022 की चुनावी जंग राजस्थान की तर्ज पर लड़ी जाएगी। चुनावी प्रबंधन का पूरा खाका कमोबेश इसी तर्ज पर विकसित किया गया है। विभिन्न प्रदेशों से कांग्रेसी दिग्गज छोटे-छोटे क्षेत्रों में डेरा डाल चुके हैं। पहले चरण में विधानसभा क्षेत्रों में चुनावी माहौल तैयार करने से लेकर बूथ स्तर पर कार्यकर्त्ताओं को लामबंद करने का काम प्रारंभ किया जा चुका है। दूसरे और अंतिम चरण में छोटी जनसभाओं के माध्यम से पार्टी को जनता से जोड़ने का सघन अभियान छेड़ा जाएगा।
देश में चुनिंदा राज्यों में सिमटने से चिंतित कांग्रेस अब अपने दमखम वाले राज्यों में सत्ता की लड़ाई के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। उत्तराखंड इन्हीं राज्यों में से है, जहां पार्टी अपनी वापसी की उम्मीदें देख रही है। पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य की राजनीतिक गतिविधियों पर बारीकी से नजर गड़ाए हुए है। कार्यकर्त्ताओं को जमीनी लड़ाई के लिए तैयार करने का जिम्मा सिर्फ प्रदेश संगठन या प्रदेश के क्षत्रपों पर नहीं छोड़ा गया है, बल्कि विभिन्न राज्यों के चुनावी युद्ध की गहरी समझ रखने वालों विधायकों, पूर्व विधायकों, मंत्रियों व पूर्व मंत्रियों, सांसदों व पूर्व सांसदों को माइक्रो लेवल पर जिम्मेदारी सौंपी गई है।
प्रदेश में जिला, ब्लाक से लेकर बूथ स्तर तक पार्टी कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षण का जिम्मा राष्ट्रीय प्रवक्ताओं और केंद्रीय नेताओं की बड़ी फौज को थमाया गया है। दरअसल राजस्थान विधानसभा चुनाव के पिछले चुनाव में कांग्रेस ने इसी तरह प्रबंधन किया था। यह रणनीति सफल रहने के बाद इसे ही सटीक फार्मूले के तौर पर उत्तराखंड में भी आजमाया जा रहा है। चुनावी प्रबंधन की व्यूह रचना इसी फार्मूले पर रची गई है। जमीन पर नतीजे दिखाई दें, इसके लिए क्षेत्रवार मतदाताओं को साधने पर जोर है। इसी काम को अंजाम देने के लिए एआइसीसी ने राज्य के 26 सांगठनिक जिलों और पांच लोकसभा क्षेत्रों में सोच-समझकर पर्यवेक्षकों को नामित किया है।
पर्यवेक्षक भले ही विधानसभा क्षेत्रवार टिकट को लेकर दावेदारों की शक्ति और क्षमता का आकलन कर रहे हों, लेकिन उनका असल मकसद जमीनी स्तर पर पार्टी की संभावनाओं को भांपना ही है। इस संबंध में फीडबैक प्रदेश के नेताओं को नहीं, बल्कि केंद्रीय स्तर पर पहुंचाना है। चुनाव के नजदीक टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार के प्रबंधन में यही फीडबैक केंद्रीय नेतृत्व के फैसले में निर्णायक भूमिका निभाता दिखे तो आश्चर्य नहीं किया जाना चाहिए। पार्टी सूत्रों की मानें तो बीते वर्ष उत्तराखंड में प्रदेश प्रभारी को बदलकर अपेक्षाकृत युवा चेहरे देवेंद्र यादव की नियुक्ति राजस्थान के फार्मूले को ध्यान में रखकर की गई थी।