देहरादून। पिछले दो दिनों में कुदरत ने उत्तराखंड में जिस तरह कहर बरपाया है, उसने आपदा की दृष्टि से संवेदनशील गांवों के पुनर्वास को लेकर चिंता बढ़ा दी है। राज्य में ऐसे गांवों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और वर्तमान में यह आंकड़ा 400 पार कर चुका है। इसे देखते हुए शासन ने अब इन गांवों के भू-गर्भीय सर्वेक्षण की मुहिम तेज करने का निर्णय लिया है। इसके लिए भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई के भूगर्भ विज्ञानियों की चार टीमें गठित की गई हैं। फिलवक्त ये टीमें चार जिलों में सर्वे कर रही हैं। सचिव आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास एसए मुरुगेशन के अनुसार सालभर के भीतर सभी आपदा प्रभावित गांवों का भू-गर्भीय सर्वेक्षण पूर्ण करने का लक्ष्य रखा गया है।
अतिवृष्टि, भू-स्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का निरंतर दंश झेलते आ रहे उत्तराखंड में ऐसे गांवों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जहां जमीन दरकने से स्थिति रहने लायक नहीं रह गई है। वर्ष 2015 तक उत्तराखंड में ऐसे गांवों की संख्या 225 थी। हालांकि, वर्ष 2012 से अब तक 83 गांवों का पुनर्वास किया जा चुका है, लेकिन आपदा प्रभावित गांवों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है और वर्तमान में यह चार सौ पार हो चुका है। ऐसे में सरकार की पेशानी पर बल पड़ने लगे हैं। इस सबको देखते हुए अब इन गांवों का भू-गर्भीय सर्वेक्षण कराया जा रहा है।
सचिव आपदा प्रबंधन एसए मुरुगेशन के अनुसार भू-गर्भीय सर्वेक्षण के आधार पर आपदा प्रभावित गांवों को अत्यंत संवेदनशील व संवेदनशील श्रेणियों में रखा जाता है। पहले चरण में अत्यंत संवेदनशील श्रेणी वाले गांवों का पुनर्वास किया जाता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में आपदा प्रबंधन विभाग की पहल पर भूतत्व एवं खनिकर्म इकाई के भूगर्भ विज्ञानियों की चार टीमें गठित कर इन्हें उत्तरकाशी, रुद्रप्रयाग, चमोली व पिथौरागढ़ जिलों के आपदा प्रभावित गांवों के सर्वेक्षण का जिम्मा सौंपा गया है।
इन टीमों में कुछ तकनीकी विशेषज्ञ भी शामिल किए गए हैं। मुरुगेशन के अनुसार विभाग को निर्देश दिए गए हैं कि सालभर के भीतर सभी आपदा प्रभावित गांवों का भू-गर्भीय सर्वेक्षण सुनिश्चित करा लिया जाए। भू-गर्भीय रिपोर्ट के बाद इन गांवों के पुनर्वास के लिए कदम उठाए जाएंगे।