देहरादून। उत्तराखंड के पहाड़ों में किसी जमाने में रिंगाल से विभिन्न प्रकार के वस्तुएं बनना रोजगार का एक बड़ा साधन था। वर्तमान में कच्चा माल उपलब्ध न होने से रिंगाल कारोबार सीमित रह गया है। बाजार में इन उत्पादों की डिमांड तो बढ़ रही है। लेकिन कच्चा माल न होने से हस्तशिल्पी वस्तुएं तैयार नहीं कर पा रहे हैं।
यहां तक की प्रदेश में किसान अपने ही खेत में रिंगाल की व्यवसायिक खेती नहीं कर सकते हैं। इसके लिए वन विभाग ने परमिट लेना पड़ता है। वहीं, आरक्षित वन क्षेत्र में प्राकृतिक रूप से उगने वाला रिंगाल को निकालना प्रतिबंधित है।
प्रदेश के उत्तरकाशी, चमोली, रुद्रप्रयाग, बागेश्वर जिला के कई गांवों में लोगों की आजीविका मुख्य साधन रिंगाल है। इससे विभिन्न प्रकार के वस्तुएं बनाकर करीब सात सौ से अधिक परिवार जुड़े हैं। रुद्रप्रयाग जनपद में देव रिंगाल का उत्पादन सीमित रह गया है। आसानी से कच्चा माल न मिलने के कारण हस्तशिल्पी धीरे-धीरे इस व्यवसाय को छोड़ रहे हैं। जबकि बाजार में इन उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
यदि किसी विदेशी बायर ने रिंगाल से बने सजावटी वस्तुओं का बड़ा आर्डर दे दिया तो इसकी सप्लाई करना संभव नहीं है। रुद्रप्रयाग जनपद के उच्छाडुंगी, भुनालगांव, मनसूना, राउलेंक, मोहनखाल, चंद्रनगर समेत केदारघाटी के बडासू आदि गांव में कई लोग रिंगाल हस्तशिल्प से जुड़े हुए हैं। रिंगाल से तरह-तरह की टोकरियां, सूप्पे, लैंप शेड, फ्लावर पॉट, चंगरे समेत अन्य वस्तुएं तैयार करने में हस्तशिल्पियों को काफी समय लगता है।
त्पादों की बाजार डिमांड बढ़ी
एकीकृत आजीविका परियोजना के तहत उच्छाडूंगी में छह समूहों में 36 लोग रिंगाल व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इन उत्पादों की बाजार डिमांड बढ़ी है, लेकिन पहाड़ में देव रिंगाल की उपलब्धता मध्य हिमालय की तलहटी तक सीमित है। जिस कारण वहां तक पहुंचना आम आदमी के बस में नहीं है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बसे गांवों में देव रिंगाल की नर्सरी स्थापित करने की मांग की। जिससे पर्याप्त कच्चा माल मिल सके।
-वीरेंद्र दत्त सेमवाल, समन्वयक, आजीविका स्वायत्त सहकारिता
गांवों में कम हुआ रिंगाल से बने वस्तुओं का उपयोग
पहाड़ों में रिंगाल से बने वस्तुओं का उपयोग काफी कम हो गया है। हस्तशिल्पी प्रसादु लाल, बुद्धि लाल, रणपाल का कहना है कि कच्चा माल आसानी से नहीं मिलता है। साथ ही रिंगाल से वस्तुएं बनाने में मेहनत व समय काफी लगता है। खेतीबाड़ी में इस्तेमाल होने वाले कंडी, टोकरी की मांग भी काफी कम हो गई है।
व्यवसायिक खेती के लिए लेना पड़ता है परमिट
रिंगाल की व्यवसायिक खेती में सबसे बाधा यह भी है कि किसान अपने खेत में भी रिंगाल नहीं उगा सकता है। इसके लिए वन विभाग से परमिट लेना पड़ता है। इस वजह से पहाड़ों में रिंगाल की खेती व्यवसायिक तौर पर नहीं हो पाई है। वहीं, आरक्षित वन क्षेत्र में भी प्राकृतिक रूप से उगने वाला रिंगाल का इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबंधित है।
– मनोज चंद्रन, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, उत्तराखंड बंबू बोर्ड
हस्तशिल्पियों द्वारा तैयार रिंगाल के उत्पादों की डिमांड बढ़ रही है। इसके लिए शिल्पियों को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। हिमाद्रि के माध्यम से रिंगाल के उत्पादों की मार्केटिंग की जा रही है।
-सुधीर चंद्र नौटियाल, निदेशक उद्योग विभाग