वित्तीय वर्ष 2019-20 में उत्तराखंड सरकार के राजस्व घाटे की स्थिति खराब रही है। सरकार इतना कमा नहीं सकी, जितना उसने खर्च कर दिया। भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है। कैग की रिपोर्ट से राज्य सरकार के वित्तीय प्रबंधन पर सवाल खड़े हुए हैं।
बृहस्पतिवार को सदन के पटल पर रखी गई 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वर्ष के लिए लेखा परीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2015-16 में राज्य का राजस्व घाटा 1,852 करोड़ था, जो 2016-17 में घटकर 383 करोड़ रहा, लेकिन सरकार इस सुधार को बरकरार नहीं रख सकी। उसने इतना राजस्व कमाया नहीं जितना खर्च दिया। खर्च और कमाई के इस अंतर से 2017-18 में राजस्व घाटा बढ़कर 1,978 करोड़ हो गया।
वर्ष 2018-19 में इस स्थिति में कुछ सुधार हुआ और राजस्व घाटा घटकर 980 करोड़ रुपये पहुंचा, लेकिन 2019-20 में सरकार राजस्व घाटे को नहीं संभाल सकी और यह बढ़ 2,136 करोड़ पहुंच गया। कैग इसकी वजह राजस्व और पूंजीगत व्यय के बीच गलत वर्गीकरण करने, लौटाए जाने वाले ब्याज का हस्तांतरण न करें को बताया है।
कैग ने दिया ये सुझाव
कैग ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकार राजस्व अधिशेष राज्य बनने के लिए अपने संसाधनों को बढ़ाए। अपने दायित्वों के निवर्हन में उचित कदम उठाए। सही वित्तीय स्थिति को दर्शाया जाना आवश्यक है। राज्य सरकार की ब्याज आरक्षित राशियों और जमाओं पर ब्याज का प्रावधान किया जाए।
राजकोषीय घाटा लक्ष्य के भीतर
वित्तीय वर्ष 2019-20 के दौरान राजकोषीय घाटा 7,657 करोड़ रहा जो 14वें वित्त आयोग के सकल राज्य घरेलू उत्पाद के 3.25 प्रतिशत मानक लक्ष्य के भीतर रहा। उच्च राजस्व घाटे की वजह से राजकोषीय घाटे की गुणवत्त खराब हुई। 2018-19 में राजकोषीय घाटे में राजस्व घाटे का योगदान 13 प्रशित से बढ़कर 2019-20 में 28 प्रतिशत हो गया।
सरकार की कुल कमाई और खर्च के अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद जीडीपी के प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है। कुल कमाई से अधिक खर्च होने पर सरकार बाजार से कर्ज लेती है। सरकार की राजस्व प्राप्ति और राजस्व व्यय के बीच के अंतर को राजस्व घाटा कहते हैं।
प्रदेश सरकार के 30 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में से आठ उपक्रम पिछले 33 साल से ठप पड़े हैं। ज्यादातर उपक्रमों की माली हालत ठीक नहीं है। यह खुलासा भारत के नियंत्रक महालेखा परीक्षक की वित्तीय रिपोर्ट से हुआ है। कैग ने खुलासा किया है कि 31 मार्च 2020 तक तीन निगमों सहित 30 राज्य सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम थे। 30 में से आठ में काम ठप है। अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय से चले आ रहे इन सार्वजनिक उपक्रमों को आठ से 33 वर्षों का समय हो गया है। इन आठ उपक्रमों में 23.88 करोड़ की निवेश पूंजी है। कैग का मानना है कि ऐसे सार्वजनिक उपक्रमों में निवेश राज्य की आर्थिक वृद्धि में योगदान नहीं करता है।
ठप सार्वजनिक उपक्रमों की सूची
यूपीएआई, ट्रांस केब लिमिटेड (केएमवीएन की सहायक), उत्तर प्रदेश डिजिटल लिमिटेड (केएमवीएनएल की सहायक), कुमट्रान लिमिटेड (उत्तर प्रदेश हिल इलेकट्रॉनिक्स कार्पोरेशन लिमिटेड की सहायक), उत्तर प्रदेश हिल क्वार्टज लिमिटेड (उत्तर प्रदेश हिल इलेक्ट्राकिक्स कार्पोरेशन की सहायक), गढ़वाल अनुसूचित जनजाति विकास निगम लि. (कुमाऊं मंडल विकास निगम लिमिटेड की सहायक), गढ़वाल अनुसूचित जनजाति विकास निगम लि., कुमाऊं अनुसूचित जनजाति विकास निगम लि., ट्रांस केबल लि. और उत्तर प्रदेश डिजीटल लि. 2016-17 तक सक्रिय थे। इन्हें वर्ष 2018-19 के लिए अकार्यत सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम की सूची में लाया गया।