कोरोना इफेक्ट: बस मैकेनिक उठा रहे रद्दी, मालिक कर रहे मजदूरी

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कोरोना संकट सिटी बसों के मालिक, ड्राइवर, कंडक्टरों के साथ ही बस मैकेनिकों पर भारी भी पड़ रहा है। लाखों रुपये की बसें सड़क किनारे धूल फांक रही हैं। जब से कोरोना कफ्र्यू शुरू हुआ बसें नहीं चल पाई। संचालकों के सामने दो वक्त की रोटी का गुजारा करने की मुश्किल खड़ी होने लगी है। कोई मजदूरी कर रहा है तो कोई कबाड़ और रद्दी का काम करने के लिए विवश है महानगर सिटी बस महासंघ के अध्यक्ष विजय वर्धन डंडरियाल बताते हैं शहर के विभिन्न रूटों पर 270 बसें चलती हैं, लेकिन पिछले डेढ़ साल से सिटी बस संचालकों के  साथ ड्राइवर और कंडक्टर भी परेशान हैं। सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद नहीं मिल पाई। घर के खर्चे के साथ टैक्स, बीमा और बैंक की किश्तें चुकाने की चिंता सता रही है।

केस 1: खुड़बुड़ा मोहल्ला निवासी दिलदार सिंह बस मिस्त्री है। दिलदार बताते हैं जब कोरोना संकट नहीं था तब महीने दस से 12 हजार रुपये कमा लेते थे, लेकिन जब से कोरोना शुरू हुआ काम नहीं मिल रहा है। घर के खर्चे उठाने मुश्किल हो गए थे। राशन के लिए तक पैसा नहीं था। घर में पत्नी और दो बच्चे हैं। मजबूरी में कभी कबाड़ तो कभी रद्दी उठाने का काम रहा हूं।

केस 2: प्रेमनगर के उमेदपुर निवासी कुलदीप सिंह सिटी बस के मालिक हैं। कुलदीप ने बताया कि उन्होंने 2016 में सिटी बस खरीदी। अभी बस की किश्तें भी पूरी नहीं हो पाई। डेढ़ साल से काम ठप है। बीच में थोड़ा बहुत काम चला, लेकिन खर्चे भी नहीं उठ पाए। परिवार का भरण पोषण तो करना ही है, मजबूरी में मजदूरी करनी पड़ रही है, लेकिन मजदूरी भी बराबर नहीं मिल पा रही है। सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पा रही है।

केस 3: ठाकुरपुर निवासी राहुल दस साल से सिटी बस के ड्राइवर हैं। 2019 में राहुल ने स्कूल वैन भी खरीदी, जिसे एक स्कूल में लगाया, लेकिन एक साल बाद कोरोना की वजह से स्कूल बंद हो गए। इस बार वैन को चारधाम यात्रा पर चलाने की तैयारी थी, लेकिन यात्रा पर कोरोना का ग्रहण लग गया। कुछ दिन मैने मजदूरी की। फिर तबीयत खराब हो गई थी। आर्थिक स्थिति माली होती जा रही है। हमारी सरकार इस बारे में कुछ नहीं सोच रही है।

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