दरअसल, हाल फिलहाल में ही दो मामले इस तरह के सामने आए हैं। इससे पहले एक और मामला 2018 में सामने आया था। इसमें राजपुर थाना क्षेत्र का एक नशा मुक्ति केंद्र पीड़ितों के भागने में चर्चाओं में आया था। तब भी और अब भी बस इतना ही पता चल पाया है कि यह एक सोसाइटी यानी समिति के अंतर्गत संचालित होते हैं, लेकिन न तो ये किसी विभाग के अंतर्गत हैं और न ही अन्य कोई निगरानी की व्यवस्था। जिलाधिकारी डॉ. आर राजेश कुमार ने बताया कि अभी तक इन पर निगरानी की कोई व्यवस्था नहीं है। फिलहाल, चिट्स फर्म्स एंड सोसाइटी रजिस्ट्रार से जानकारी मांगी गई है।इससे पता चलेगा कि कितनी सोसाइटियां रजिस्टर्ड हैं। इसके बाद ही यह पता किया जा सकता है कि कितनी सोसाइटियों के अंतर्गत इस तरह के केंद्र संचालित हो रहे हैं। इन नशा मुक्ति केंद्रों में इस तरह की हरकतें हो रही हैं। यह जितनी चिंताजनक बात है उससे भी कहीं अधिक चिंता की बात यह है कि अब तक इनके लिए कोई निगरानी तंत्र ही नहीं बनाया गया।
केंद्र में नशे के आदी लोगों को इलाजऔर काउंसिलिंग के नाम पर भर्ती किया जाता है, लेकिन यहां किस प्रकार के डॉक्टर मनोचिकित्सक होने चाहिए। इस प्रकार की कोई गाइडलाइन भी नहीं है। जबकि, इसी के नाम पर यहां हजारों युवाओं को भर्ती किया गया है।
‘कैसे हो कार्रवाई, जब गाइडलाइन ही नहीं’
नशा मुक्ति केंद्रों को चलाने के लिए किसी प्रकार की न गाइडलाइन है और न ही कोई एक्ट। ऐसे में वहां कुछ गड़बड़झाला भी हो पुलिस किन कानूनों में कार्रवाई करे। हालांकि, अब एसएसपी ने सभी केंद्रों की सूची तैयार कर इनका सत्यापन करने के निर्देश दिए हैं।
एसएसपी डॉ. योगेंद्र सिंह रावत ने बताया कि मामले सामने आने के बाद तमाम जानकारियां जुटाई गई हैं। सभी थाना पुलिस को निर्देशित किया गया है कि वह अपने-अपने क्षेत्र में ऐसे केंद्रों की सूची तैयार कर लें।
सभी केंद्रों का निरीक्षण किया जाएगा। अब केवल देखना यह है कि वहां पर कोई अपराध तो नहीं हो रहा है। ऐसे केंद्र सिर्फ सोसाइटी एक्ट के तहत पंजीकृत होते हैं। यदि कोई नियम कायदे इनके लिए होते तो इनके खिलाफ कार्रवाई में आसानी होती।