देहरादून में फैल रही प्रदूषण, कम हो रही लोगों की औसत उम्र

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दून में वायु प्रदूषण का जहर, कम हो रही लोगों की औसत उम्र
देहरादून। एक दौर था, जब दून को सुकूनदायक माहौल और स्वच्छ आबोहवा का पर्याय माना जाता था। पर आज इसकी गिनती देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में होने लगी है। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के मुताबिक, उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की वायु गुणवत्ता अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप होती तो यहां के लोग 4.2 वर्ष ज्यादा जी सकते थे। यानि वायु प्रदूषण की गंभीर स्थिति लोगों की ‘जीवन प्रत्याशा’ को कम कर रही है।

दरअसल, शिकागो यूनिवर्सिटी- एपिक (एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट एट द यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो) की तरफ से हाल में ‘वायु गुणवत्ता- जीवन सूचकांक’ पर एक में रिपोर्ट जारी की गई है। जिसमें प्रदेश में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक बताई गई है।

इस शोध में पता चला है कि सूबे में हो रहा वायु प्रदूषण यहां लोगों की उम्र औसतन 4.2 साल तक कम कर रहा है। अगर यहां के वायुमंडल में प्रदूषित सूक्ष्मतत्वों एवं धूलकणों की सघनता 10 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा बताया गया सुरिक्षत मानक) के सापेक्ष हो तो जीवन प्रत्याशा में बढ़ोत्तरी हो सकती है। इसमें दून भी पीछे नहीं है। यहां भी प्रदूषण लोगों की उम्र कम कर रहा है। लोगों का जीवनकाल ही नहीं घट रहा है बल्कि वह बीमार भी हो रहे हैं।


प्रदूषण डाल रहा ऑक्सीजन बैंक पर डाका

अगर आप वजन लेकर चलने में हांफ जाते हैं। सीढ़ी चढ़ने, दौड़ने में सांस तेजी से फूलने लगती है, तो फेफड़ों की जांच कराएं। संभव है कि आपके फेफड़े वायु प्रदूषण की भेंट चढ़ रहे हों। यह बढ़ते प्रदूषण का ही नतीजा है कि फेफड़ों का ऑक्सीजन बैंक घट रह है।

विशेषज्ञों का कहना है कि बड़े कणों को नाक का म्यूकोसा रोक लेता है, लेकिन पीएम एक और पीएम 2.5 फेफड़ों के अंदर सांस की सूक्ष्म पाइपों में सूजन बनाते हैं। अत्याधिक प्रदूषण से इन पाइपों की लाइनिंग बिगड़ जाती है। बाद में ये सिकुड़ जाती है, जो ठीक नहीं हो सकती।

पीएम 2.5 के साथ हैवी मेटल शरीर में पहुंचकर कैंसर की वजह भी बनते हैं। दरअसल, वयस्क व्यक्ति के फेफड़े में छह लीटर ऑक्सीजन स्टोर हो सकती है। ये बीमारी से लडने में मदद करती है। पर प्रदूषण से व्यक्ति की ऑक्सीजन रोकने की क्षमता कम होने लगती है।

फेफड़ों की डैमेज दवाओँ से भी नहीं होती ठीक

दून मेडिकल कॉलेज के श्वास रोग विभागाध्यक्ष डॉ. श्वेताभ पुरोहित के मुताबिक, पीएम 2.5 से फेफड़ों की लाइनिंग डैमेज होती है। जिसे दवाओं से भी रिपेयर नहीं किया जा सकता। ऐसे मरीजों में निमोनिया व सेकेंडरी संक्रमण तेजी से पकड़ता है। अस्थमा व सीओपीडी के मरीजों में अटैक का खतरा बढ़ा है।

हृदय रोगी के लिए खतरनाक

हृदय रोग विशेषक्ष डॉ. योगेंद्र सिंह के अनुसार, कई शोध में प्रदूषण से एथरोस्क्लेरोसिस-धमनियों में रुकावट की प्रक्रिया तेज होने का खतरा देखा गया है। जो हृदय रोगी के लिए खतरनाक है। जिन मरीजों के हृदय का वॉल्व खराब है, दिल बढ़ा है या सीओपीडी के रोगी हैं, उनमें रिस्क ज्यादा है।

हवा खराब तो दिल पर भी फांस

वायु प्रदूषण यानी हवा की खराब सेहत सिर्फ सांसों को ही प्रभावित नहीं करती, बल्कि दिल पर भी भारी पड़ती है। हवा में घुलित महीन कण (पीएम-2.5) की मात्रा बढने से फेफड़ों की अपेक्षा दिल के लिए अधिक घातक साबित हो रही है।

हृदय रोग विशेषज्ञों की मानें तो पीएम 2.5 सांसों के जरिए फेफड़े से होते हुए खून में मिल रहा है, इसकी वजह से नसों का म्यूकोसा क्षतिग्रस्त होकर नसों में रुकावट पैदा कर रहा है। इस वजह से हार्ट अटैक से लेकर हार्ट फेल होने का खतरा बढ़ जाता है।

बच्चे हो रहे बीमार

गांधी अस्पताल के वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. पीएस रावत के अनुसार एक अध्ययन में बात सामने आई है कि प्रदूषण के कारण नवजात बच्चों के फेफड़े अच्छी तरह विकसित नहीं हो पाते हैं। उनका कहना है कि वैसे बच्चे जो कम से कम 10 साल तक वायु प्रदूषण में रहते हैं। उनमें बुढ़ापे में सांस संबंधी बीमारी का खतरा अधिक होता है।

ये हो सकती हैं दिक्कत

– सांस लेने में दिक्कत।

– आंखें, नाक और गले में जलन।

– छाती में खिंचाव।

– फेफड़ों का सही से काम ना कर पाना।

– गंभीर श्वसन रोग।

– अनियमित दिल की धड़कन और इत्यादि।

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