देहरादून में भी छाया धुआं, बच्चों सहित कई लोग बीमार, डॉक्टरों ने दी ये सलाह

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देहरादून। दीपावली पर आतिशबाजी के अलावा मौसम के बदले मिजाज से भी प्रदूषण और अधिक खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। राजधानी देहरादून व आसपास के इलाकोें में आसमान में मंगलवार दिनभर धुएं का गुबार छाया रहा।आज बुधवार की सुबह भी कुछ ऐसा ही आलम है। कुछ जागरूक शहरियों ने प्रदूषण के खतरों से खुद को बचाने के लिए मास्क का उपयोग किया। राजधानी की सड़कों  पर तमाम ऐसे शहरी दिखायी दिए जो मास्क पहनकर गाड़ी चलाते नजर आए।

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय अधिकारी अमित पोखरियाल ने बताया कि प्रदूषण के स्तर की लगातार मॉनीटरिंग की जा रही है। इसकी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेजी जाएगी। जहां तक प्रदूषण स्तर में कमी का सवाल है तो स्थितियों को सामान्य होने में अभी कुछ वक्त लगेगा। यदि लोगों को प्रदूषण के खतरों से बचना है तो आतिशबाजी से परहेज करना होगा। चौंकाने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से तमाम आदेश जारी किए जाने के बावजूद लोग दीपावली समेत अन्य पर्वों पर जमकर आतिशबाजी कर रहे हैं। इसके दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं। 

दून अस्पताल के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. केसी पंत का कहना है कि उनके पास कई ऐसे मरीज पहुंचे जिन्हें पहले ही दमा बीमारी है और उनका इलाज चल रहा है। ऐसे सभी मरीजों का इलाज करने के साथ ही इन्हेलर लेने की सलाह दी गई है।

डॉ. पंत के मुताबिक दीवाली के बाद दमा के मरीजों की संख्या 20 फीसदी तक बढ़ जाती है। मौसम जब भी तेजी से करवट लेता है, श्वांस नली और मांसपेशियों में जकड़न हो जाती है। बकौल डॉ. पंत दीपावली के बाद दमा के मरीज बाहर न निकले तभी बेहतर है। कारण कि अगले तीन-चार दिन वायु प्रदूषण इतना अधिक होगा कि बाहर निकलने वाले सामान्य लोग भी सांस सम्बंधी रोगों के शिकार हो सकते हैं। विशेष अवस्था में दमा रोगियों को बाहर निकलने से पहले मुंह-नाक पर पतला सूती कपड़ा बांध लेना चाहिए। जिन्हें थोड़ी भी शिकायत हो, उन्हें सुबह-शाम तलवे में मालिश करनी चाहिए।

आतिशबाजी से फैले प्रदूषण ने दमा, सीओपीडी, अस्थमा से पीड़ित मरीजों पर ही हमला नहीं बोला वरन बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में ले लिया है। वरिष्ठ सांस रोग विशेषज्ञ डॉ. परवेज अहमद के मुताबिक दीपावली पर हुई आतिशबाजी के चलते दर्जनभर बच्चों को भी एलर्जी हो गई। ऐसे में उनका भी इलाज करना पड़ा। इसके अलावा उनके अस्पताल में दो दर्जन से अधिक दमा के क्रोनिक मरीजों का इलाज किया जा रहा है।

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