देहरादून । जब भी बात सिंगल यूज प्लास्टिक की होती है तो जहन में प्लास्टिक की बोतल या थैलियों की तस्वीर आती है, लेकिन संगीता थपलियाल मंदिरों में चढ़ाई जाने वाली सिंथेटिक की चुनरियों व कपड़े को सिंगल यूज प्लास्टिक मानती हैं।बाल एवं महिला विकास विभाग की नौकरी छोड़कर अभियान शुरू करने वाली संगीता कहती हैं कि देवी-देवताओं पर चढ़ाई जाने वाली आस्था रूपी चुनरियों को अकस्र नदियों में बहा दिया जाता है। इससे नदियां प्रदूषित हो रही हैं।
इनका दोबारा कोई उपयोग नहीं है। यदि मंदिरों में कॉटन (सूती) की चुनरियां चढ़ाई जाएं तो उपयोग से हटाने के बाद इनके कपड़े तैयार किए जा सकते हैं। इसी अभिनव प्रयोग को संगीता थपलियाल धरातल पर उतारने में जुटी हैं।
देवांचल विहार (अपर सारथी विहार के समीप) निवासी संगीता थपलियाल कहती हैं कि सिंथेटिक की चुनरियां भी सिंगल यूज प्लाटिस्क होती हैं। मंदिरों में इन्हें चढ़ाया जाता है, लेकिन इसके बाद यह किसी उपयोग लायक नहीं रहती और इन्हें नदी में बहा दिया जाता है। इससे नदियों की पवित्रता प्रभावित होती है। यदि देवी पर देवी-देवताओं पर चढ़ाई जाने वाली ये चुनरियां किसी गरीब के काम आ जाए तो असल मायने में यही सच्ची पूजा होगी। अभी इस ओर लोगों का ध्यान बहुत कम है।
अपना भविष्य छोड़ चुनी दूसरों की खुशियां
संगीता ने बताया कि वह बाल एवं महिला विकास के वन स्टॉप सेंटर में केस वर्कर के रूप में कार्यरत थीं। उन्हें नौकरी छोड़कर स्वरोजगार को चुना। इसमें अब वह महिलाओं को भी रोजगार दे रही हैं। वर्तमान में अभी उनका कार्य छोटे पैमाने पर है, जिसमें छह महिलाएं कार्यरत हैं।
ऐसे मिली प्रेरणा
संगीता ने बताया कि जब वन स्टॉप सेंटर में थीं तो वहां आपराधिक घटनाओं से पीड़ित महिलाओं को रखा जाता था। उन्हें कानूनी, मेडिकल, शैक्षिक व अन्य परामर्श व सुविधाएं दी जाती थी, लेकिन महिलाओं को नई जिंदगी शुरू करने के लिए रोजगार नहीं मिल पाता था। उनके मन में विचार आया कि क्यों न वह स्वयं इस दिशा में कार्य करें। तभी से उन्होंने यह निश्चय किया। इस मुहिम में उनके पति विजय थपलियाल ने भी पूरा सहयोग करते हैं। विजय निरंजपुर कृषि मंडी समिति में सचिव पद पर कार्यरत हैं।
कई मंदिरों में दिख सकता है बदलाव
संगीता ने बताया कि कॉटन की चुनरियों के उपयोग को लेकर उन्होंने ऋषिकेश गंगा सेवा समिति, केदारनाथ व बद्रीनाथ मंदिर में संपर्क किया है। समितियों की ओर से सकारात्मक रूख भी देखने को मिला है। यदि इन बड़े धार्मिक स्थलों में यह प्रयोग शुरू हो जाए तो इससे बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
ये होंगे फायदे
उन्होंने बताया कि कॉटन की चुनरियों से नदियां प्रदूषित होने से बचेंगी, लेकिन इसके कई फायदे भी हैं। कॉटन की चुनरियों से बच्चों के कपड़े भी बनाए जा सकते हैं। संगीता ने कहा कि वह मंदिरों से उपयोग से बाहर हुईं चुनरियां लेंगी और उनके कपड़े बनाएंगी। ये कपड़े गरीब बच्चों को दिए जाएंगे। उन्होंने कहा कि पहले भी यही व्यवस्था थी कि मंदिरों में चढ़ाने वाले कपड़े व सामान गरीबों को दिए जाते थे, ताकि अमीर व गरीब के बीच की असामनता को दूर किया जा सके।