पहाड़ के जिलों में पैदा हो रहे प्रति एक हजार में से औसतन 19 नवजात उचित उपचार के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। चिंता की बात यह है कि छोटे स्वास्थ्य केंद्रों से रेफर किए जाने से पहले बीमार नवजात बच्चों को प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल पा रहा है।
पहाड़ से इलाज के लिए हल्द्वानी के सुशीला तिवारी अस्पताल (एसटीएच) पहुंच रहे नवजात बच्चों के आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद ये चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के बाद तैयार यह रिपोर्ट एसटीएच प्रबंधन और शासन को भेजी गई है। इन आंकड़ों का अध्ययन करने वाले मेडिकल कॉलेज के विशेषज्ञों के मुताबिक, यदि बीमार नवजात बच्चों को समय से उचित प्राथमिक उपचार मिल जाए, तो मौत का यह आंकड़ा कुछ कम हो सकता है।
विशेषज्ञों के अध्ययन की रिपोर्ट के मुताबिक, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चम्पावत जिलों में नवजात बच्चों के उपचार के पर्याप्त एवं उचित इंतजाम आज भी नहीं हैं। इतना ही नहीं, पहाड़ी जिले के किसी सरकारी अस्पताल में विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) की सुविधा तक नहीं है। इसके अलावा बाल रोग विशेषज्ञ नहीं होने के कारण बाकी डॉक्टर ऐसे केसों में किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। ऐसे में मामूली बीमारी में बगैर उचित प्राथमिक उपचार के पहाड़ से ऐसे नवजात बच्चों को हल्द्वानी रेफर किया जा रहा है। लंबी दूरी तय करके इलाज के लिए अस्पताल लाने तक गंभीर बीमार बच्चों को बचाना और भी मुश्किल हो जाता है।
ऑक्सीजन, ड्रिप तक सही से नहीं मिलती
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार, रेफर करने के दौरान भी गंभीर हालत वाले नवजात बच्चे को ऑक्सीजन, ड्रिप के साथ निर्धारित तापमान में रखना होता है। ज्यादातर मामलों में यह सुविधा नहीं मिल पाती है, जिससे नवजात बच्चें की जानपर बन आती है।
समय से इलाज मिले तो बच सकते हैं औसत सात नवजात
इस रिपोर्ट के मुताबिक, यदि बीमार बच्चों को समय से उपचार मिल जाए तो प्रति हजार में औसतन कम से कम सात बच्चों की जान बचाई जा सकती है। आंकड़ों के मुताबिक, समय पर पहुंचने वाले प्रति हजार बच्चों में औसतन केवल 12 की मौत होती है। ये बच्चे आमतौर पर हल्द्वानी, आसपास के होते हैं।