देहरादून। ऊर्जा आज हमारी जीवनशैली का अभिन्न अंग बन चुकी है, लेकिन जिस तेजी से पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों का हर तरफ इस्तेमाल हो रहा है, उससे यह बात तय है कि आने वाले समय में हमारे परंपरागत ऊर्जा स्रोत समाप्त हो जाएंगे। दूसरी तरफ, इन ऊर्जा स्रोतों से उत्सर्जित होने वाली ग्रीन हाउस गैसों से धरती का तापमान लगातार बढ़ रहा है। इन दोनों चिंताओं का एक ही समाधान है कि गैर पारंपरिक यानी प्राकृतिक ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाए। प्राकृतिक ऊर्जा का भंडार विस्तृत होने के साथ स्वच्छ भी है, यानी पर्यावरण को यह बेहद कम नुकसान पहुंचाती है।
इसको लेकर केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकार भी संजीदा है। उत्तराखंड में अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा के व्यापक उत्पादन के लिए तमाम योजनाएं चलाई जा रही हैं। इन्हीं में से एक है बायो ऊर्जा का उत्पादन। विडंबना यह है कि उत्तराखंड में इसकी स्थिति संतोषजनक नहीं है। मैदानी इलाकों को छोड़ दें तो पर्वतीय जिलों में एक भी बायो ऊर्जा प्लांट नहीं है। ऐसा नहीं है कि इस संबंध में सरकारी महकमे प्रयास नहीं कर रहे, लेकिन ग्रामीणों को प्रेरित करने में अब तक नाकामयाब रहे हैं। अच्छी बात यह है कि मैदानी जिलों देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल व ऊधमसिंह नगर में हर साल बायो ऊर्जा प्लांट की संख्या बढ़ रही है।
इसके अलावा उत्तराखंड में सौर ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा, जल और बायोमास से भी ऊर्जा उत्पादन का प्रयास किया जा रहा है। ऊर्जा के ये स्रोत पर्यावरण संरक्षण के साथ ही ग्रामीणों की आय का जरिया भी बन रहे हैं। हालांकि, अब भी ग्रामीणों को जागरूक कर अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाए जाने की जरूरत है।
अक्षय या नवीकरणीय ऊर्जा का महत्व
यह ऊर्जा प्राकृतिक स्रोतों पर निर्भर करती है। इस ऊर्जा का भंडार बहुत बड़ा है और इसे लगातार नवीनीकृत किया जा सकता है। इसमें मुख्यत: वायु ऊर्जा, सौर ऊर्जा, हाइड्रोपावर, बायोमास, जियोथर्मल आदि शामिल हैं। उक्त सभी ऊर्जा के स्वच्छ स्रोत हैं, इनसे कार्बन व ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन न्यूनतम होता है।