देश में जल्द ही दरोगाओं कुछ अपराधों को प्रकृति के आधार पर छोटा बताया जाता है। इनमें एक्सीडेंट, पर मुकदमों की विवेचना का बोझ कम छोटी चोरियां, आपसी झगड़े, मारपीट, गाली गलौच शामिल हैं। इनमें विवेचना भी काफी हद तक छोटी होती है। मौके पर मौजूद गवाहों और अन्य साक्ष्यों के आधार परहो सकता है।छोटे अपराधों (पैटी क्राइम) में अब हेड कांस्टेबल को विवेचना का अधिकार दिलाने पर विचार किया जा रहा है। पुलिस मुख्यालय में इस गुणवत्ता में सुधार व अदालतों में पैरवी इन्हें अदालतों में स्टैंड बात को लेकर प्रस्ताव तैयार किया जा किया जा सकता है। गंभीर प्रकृति के चुका है, जिसे जल्द ही मंजूरी मिल अपराधों में मौजूदा समय में इलेक्ट्रॉनिक सकती है। इससे विवेचनाओं की और वैज्ञानिक साक्ष्य भी जुटाने होते हैं दरअसल, आईटी एक्ट और कुछ अन्य अपराधों को छोड़कर बाकी सब में दरोगाओं को ही विवेचना का अधिकार होता है। मुकदमों के बोझ से विवेचनाओं में गुणवत्ता नहीं आ पाती है। इससे न्याय में देरी होती है। एक समय में कई-कई मुकदमों की विवेचना करने पर दरोगाओं को मानसिक रूप से परेशान होने की बात भी सामने आती है। पिछले दिनों डीजीपी ने सबसे पहले पुलिस कल्याण पर ही अपना जोर दिया था।स्मार्ट पुलिसिंग के लिए एक प्रस्ताव यह भी था कि प्रदेश में दरोगाओं पर विवेचना का बोझ अनावश्यक न बढ़ाया जाए। पहले छोटे अपराधों की विवेचना हेड कांस्टेबल प्रमोटी स्तर के अधिकारी भी करते थे। यह एक अस्थायी व्यवस्था थी। इसका कारण है कि यहां पर हेड कांस्टेबल प्रमोटी ( एएसआई) का पद ही नहीं है। ऐसे में पैटी क्राइम की विवेचना का अधिकार हेड कांस्टेबलों को दिए जाने का प्रस्ताव दिया गया था। बीते दिनों गृह सचिव के साथ हुई बैठक में इस प्रस्ताव को भी रखा गया था।अधिकारियों के मुताबिक इस प्रस्ताव को भी जल्द मंजूरी मिल सकती है। मैदानी जनपदों में रहता है अधिकदबाव प्रदेश के चार मैदानी जनपदों में पहाड़ी नौ जनपदों से भी अधिक मुदकमे हर साल दर्ज किए जाते हैं। पहाड़ में तैनात दरोगाओं पर तो विवेचना अधिक नहीं रहती। दून, हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और नैनीताल में काफी संख्या रहती है। यहां पर पैटी क्राइम की संख्या भी पहाड़ों से अधिक रहती है। ऐसे में गंभीर अपराधों के साथ मुकदमों की विवेचना भी दरोगाओं को ही करनी पड़ती है।
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