देहरादून। पारिस्थितिकी और आर्थिकी के बीच बेहतर समन्वय जरूरी है। कोरोनाकाल में मिली यह सीख उत्तराखंड में धरातल पर उतरने जा रही है। विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ‘ईको रेस्टोरेशन’ के तहत वन विभाग ने प्रदेश में नदियों के पुनर्जीवीकरण, वन क्षेत्रों से लैंटाना उन्मूलन, मियावाकी पद्धति से वनों का विकास, जल संरक्षण और बायोडायवर्सिटी पार्क की मुहिम पर ध्यान केंद्रित करने का निश्चय किया है। खास बात यह कि इन सभी कार्यों में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित कर उसके लिए आजीविका के साधन भी विकसित किए जाएंगे।
पर्यावरणीय दृष्टि से संवेदनशील 71.05 फीसद वन भूभाग वाला उत्तराखंड देश के पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। राज्य से हर साल मिलने वाली तीन लाख करोड़ की पर्यावरणीय सेवाओं में अकेले यहां के वनों की भागीदारी 98 हजार करोड़ के आसपास है। बावजूद इसके जंगलों में चुनौतियां भी कम नहीं हैं। पिछले साल अक्टूबर से जंगलों के धधकने का क्रम शुरू हुआ तो बात सामने आई कि वन क्षेत्रों में नमी कम होना इसकी सबसे बड़ी वजह है। ऐसी तमाम चुनौतियों से पार पाने को आमजन की भागीदारी से अब कदम उठाए जा रहे हैं।
इस कड़ी में वन क्षेत्रों में जल संरक्षण के लिए मानसून सीजन में होने वाले पौधारोपण में करीब 50 फीसद ऐसी प्रजातियों के रोपण की तैयारी है, जो जल संरक्षण में सहायक हैं। साथ ही बारिश की बूंदों को सहेजने के लिए वर्षाजल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करने का निर्णय लिया गया है। इससे वन क्षेत्रों में आग का खतरा तो कम होगा ही, जलस्रोत भी रीचार्ज होंगे।नदियों के पुनर्जीवीकरण को प्रतिकरात्मक वन रोपण निधि प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण (कैंपा) से करीब 35 लाख की धनराशि मंजूर हुई है। इससे भेला, ढेला, सुसवा, पिलखर, नंधौर, कल्याणी, खोह, गंडक, हेंवल, गहड़, मालन, गरुड़गंगा, राईगाड जैसी नदियों के जल समेट क्षेत्रों में जनसहभागिता से उपचारात्मक कार्य कराए जाएंगे।
वन क्षेत्रों में लैंटाना (कुर्री) की झाड़ियों ने भी बड़ी चुनौती खड़ी की है। खासकर कार्बेट व राजाजी टाइगर रिजर्व में लैंटाना ने बड़े पैमाने पर घास के मैदानों को अपनी गिरफ्त में लिया है। लैंटाना ऐसी वनस्पति है, जो अपने इर्द-गिर्द दूसरी वनस्पतियों को नहीं पनपने देती। इसे देखते हुए लैंटाना उन्मूलन की मुहिम तेज की जा रही है। लैंटाना को हटाकर उसके स्थान पर घास के मैदान विकसित किए जा रहे हैं। कार्बेट व राजाजी में यह मुहिम रंग लाई है। अब तक करीब एक हजार हेक्टेयर में घास के मैदान विकसित किए जा चुके हैं। ऐसी ही मुहिम अन्य क्षेत्रों में चलाने की तैयारी है।
वन विभाग के मुखिया प्रमुख मुख्य वन संरक्षक राजीव भरतरी के अनुसार वन क्षेत्रों को प्राकृतिक तरीके से पनपाने को जापान की मियावाकी तकनीक को भी अपनाया जाएगा। पीपलपड़ाव, रानीखेत में यह प्रयोग सफल रहा है। इसके तहत क्षेत्र विशेष में सघन पौधारोपण किया जाता है और फिर वहां मानवीय हस्तक्षेप पूरी तरह बंद कर दिया जाता है। पौधे स्वयं प्राकृतिक तौर पर पनपते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य में जैवविविधता संरक्षण को बायोडायवर्सिटी पार्क की मुहिम भी शुरू की जा रही है। स्थानीय निकायों और समुदाय के सहयोग से ये पार्क विकसित किए जाएंगे।