देहरादून। प्रमोशन से रोक हटाए जाने के फैसले पर एससी एसटी कर्मचारी भड़क उठे हैं। उत्तराखंड एससी एसटी इंप्लाइज फेडरेशन की देहरादून में एक आपात बैठक हुई, जिसमें सरकार के निर्णय की आलोचना की गई।
फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष करम राम ने आरोप लगाया कि सरकार ने एससी एसटी वर्ग के साथ छल किया है, जिसके उसे भविष्य में कीमत चुकानी पड़ेगी। उसने दबाव में आकर निर्णय लिया, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सात फरवरी 2020 के आदेश में स्पष्ट कहा था कि सरकार अपने विवेक से प्रमोशन में आरक्षण दे सकती थी।
फेडरेशन ने 22 मार्च को देहरादून में प्रदेशस्तरीय बैठक बुलाई गई है, जिसमें आंदोलन की रणनीति बनाई जाएगी।
इन मुद्दों पर अभी है तकरार, स्थगित की है हड़ताल
जनरल ओबीसी कर्मचारी हड़ताल से काम पर वापस तो आ गए हैं, लेकिन आगे की राह भी सरकार के लिए आसान नहीं है। उत्तराखंड जनरल ओबीसी इंप्लाइज एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अभी बाकी की मांगों के पूरा न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक जोशी व प्रदेश महामंत्री वीरेंद्र सिंह गुसांई ने सीएम और सीएस को लिखे पत्र में कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण को मूल रूप से समाप्त करने के लिए उत्तरप्रदेश की तर्ज पर प्रदेश सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए या फिर अधिनियम बनाना चाहिए। उत्तरप्रदेश ने यह काम 1997 में कर दिया था।
यह कर्मचारियों की मुख्य मांगों में से एक है। इसी तरह सीधी भर्ती के नई रोस्टर प्रणाली को न बदले जाने की मांग भी की जा रही है। इन मांगों को लेकर कर्मचारी संगठन गंभीर हैं। प्रमोशन में आरक्षण को समाप्त करने की मांग के पूरे होने पर हड़ताल स्थगित की गई है।
सरकार ने हड़ताल अवधि को विशेष परिस्थितियों के ध्यान में रखते हुए विशेष अवकाश के रूप में स्वीकृत करने का आश्वासन दिया है। यह भी कहा है कि किसी भी कर्मचारी का उत्पीड़न नहीं किया जाएगा। इसी आधार पर हड़ताल को स्थगित का फैसला लिया गया है। बाकी बची हुई मांगों को एक निश्चित समय सीमा में लागू नहीं किया जाता तो एसोसिएशन हड़ताल को फिर से शुरू कर सकती है।