मनरेगा योजना पर संकट के बादल, चार महीने से केंद्र सरकार से नहीं मिला पैसा

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उत्तराखंड में 12 लाख लोगों की आजीविका का सबब बनी मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना) पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। लॉकडाउन में संकटमोचन बनी इस योजना के लिए केंद्र से पिछले चार माह से राज्य को बजट नहीं मिला है। गनीमत है कि डीबीटी के जरिये श्रमिकों को दिहाड़ी मिल जा रही है और इस वजह से मनरेगा की गाड़ी खिसक रही है।खुद राज्य सरकार ने भी इस योजना के लिए अलग से बजट की व्यवस्था की थी। मनरेगा कार्मिक भी आंदोलन पर हैं और इससे मनरेगा का कागजी कार्यवाही का काम भी प्रभावित हो सकता है।शासन के सूत्रों के मुताबिक केंद्र से मनरेगा के लिए पिछले चार माह से पैसा नहीं मिला है। मनरेगा का साल भर का बजट ही करीब सात अरब है। मनरेगा मांग आधारित योजना है। ऐसे में बजट के कारण पंचायतों के स्तर पर नई मांग को लेकर परेशानी है। इससे आने वाले समय में मनरेगा का काम प्रभावित हो रहा है। गनीमत है कि काम कर रहे श्रमिकों को डीबीटी से पैसा मिल रहा है। मनरेगा के राज्य समन्वयक मोहम्मद असलम के मुताबिक डीबीटी होने से मनरेगा पर प्रत्यक्ष रूप से असर नहीं दिख रहा है। नई मांग नहीं होगी तो प्रभाव पड़ेगा। मनरेगा में इस समय करीब 12 लाख सक्रिय श्रमिक हैं।  माह की शुरुआत से लॉकडाउन की जगह कोविड कर्फ्यू लगा है और इसमें औद्योगिक सहित अन्य आर्थिक गतिविधियां जारी हैं। इस वजह से मनरेगा पर सरकार का फोकस कम ही दिख रहा है। कहा जा रहा है कि आने वाले समय में इसका प्रभाव दिखेगा।पंचायतीराज सचिव हरिचंद्र सेमवाल के मुताबिक इस समय करीब तीन हजार प्रवासी प्रतिदिन लौट रहे हैं। पंजीकृत प्रवासियों की संख्या ही करीब 88 हजार हो चुकी है। करीब डेेढ़ लाख श्रमिकों के लौट आने का अनुमान है। ऐसे में मनरेगा में नए काम की मांग का बढ़ना भी तय है।

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