देहरादून। प्रतिवर्ष 23 मार्च को पूरे विश्व में विश्व मौसम विज्ञान दिवस मनाया जाता है। जिसका मुख्य उद्देश्य आम नागरिकों को मौसम विज्ञान के महत्व एवं मौसम मे हो रहे बदलाव के प्रति जागरूक करना है।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन की शुरुआत अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन के रूप में 1873 में की गई थी, इसके बाद जब अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन के कार्यों को सफलता प्राप्त हुई तब 23 मार्च 1950 को इसकी स्थापना विश्व मौसम विज्ञान संगठन के रूप मे की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी के रूप में स्थापित है। इसका मुख्यालय जेनेवा (स्वीटजरलैंड) मे है। वर्तमान मे दुनिया के 193 देशे विश्व मौसम विज्ञान संगठन के सदस्य देशे है। भारत भी उनमे से एक है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन का मुख्य कार्य मौसम की जानकारी देना, पृथ्वी के वायुमंडल, जलमंडल एवं स्थलमंडल मे हो रहे मौसम संबंधी परिवर्तनों के बारे में जानकारी एकत्रित करना, समय-समय पर विश्व के विभिन्न क्षेत्रो मे घटित होने वाले प्राकृतिक आपदाओ का अनुमान लगाकर विश्व को आगाह करना है।
भारतीय मौसम विज्ञान, भारत सरकार की पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक एजेंसी है। जिसका प्रमुख कार्य मौसम संबंधी टिप्पणियां, मौसम की भविष्यवाणी करना है। इसकी स्थापना 1875 मे नई दिल्ली मे की गई थी। इसके क्षेत्रीय कार्यालय चेन्नई, मुंबई, कोलकाता, नागपुर तथा गुवाहाटी है।
भारतीय मौसम विज्ञान ने जनवरी 2016 में ‘एरोसोल मॉनिटरिंग एंड रिसर्च’ की स्थापना ब्लैक कार्बन की सांद्रता, एरोसोल के विकिरण गुण तथा पर्यावरण एवं जलवायु पर इनके प्रभाव के अध्ययन के लिए किया।
विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा वर्ष 2021 का थीम है “द ओशन, आवर क्लाइमेट एंड वेदर”। विश्व भर में आज के दिन विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन केंद्र तथा राज्य सरकारो द्वारा की जाती है, जिसमें देश तथा विदेशो के जाने-माने मौसम वैज्ञानिको तथा अधिकारियो अपने शोध तथा अनुभवों द्वारा अपना ज्ञान व विचारों को आम नागरिको, छात्र छात्राओ के साथ साझा करते है। मौसम विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाले वैज्ञानिको, अधिकारियो को प्रतिवर्ष अंतर्राष्ट्रीय मौसम विज्ञान संगठन पुरस्कार, प्रोफेसर डांं विल्हो वैसला पुरस्कार,
नॉर्बर्ट गेर्बियर-मम अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार, अंतरराष्ट्रीय मौसम विज्ञान युवा वैज्ञानिक पुरस्कार देकर सम्मानित किया जाता है।
वर्तमान समय मे मौसम विज्ञान अति उन्नत शिखर पर पहुंच गया है। उच्च स्तरीय रडारो तथा कृतिम उपग्रहो के माध्यम से वैज्ञानिक मौसम संबंधी सटीक जानकारियां एकत्रित करते है। मौसम मे हो रहे अनावश्यक परिवर्तन के जिम्मेदार खुद मानव जाति है। मानव अपने स्वार्थ के लिए प्रकृति की संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर रहा है, जिससे पर्यावरण में असंतुलन हो रहा है। समय रहते हमे पर्यावरण का संरक्षण करना होगा।