देहरादून। उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य देने के साथ ही शनिवार यानि आज सुबह सूर्य उपासना के महापर्व छठ के चार दिनी कठिन अनुष्ठान का समापन हो गया। इसके बाद व्रती महिलाओं ने पारण कर ठेकुआ का प्रसाद बांटा।
कच्चे बांस के सूप में सिंघाड़ा, नारियल, फल, कच्ची हल्दी, मूली, गन्ना समेत पूजन सामग्री सिर पर लेकर जाते पुरुष और ‘कांचहि बांस की बहंगिया, बहंगी लचकत जाए’ समेत छठ के अन्य गातीं महिलाएं… शनिवार सुबह घाटों पर यह दृश्य देखते ही बन रहा था।
पूजा-अर्चना के बाद व्रती महिलाओं ने कमर भर पानी में खड़े होकर उगते सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया। साथ ही पति की दीर्घायु और संतान सुख की कामना की।
ज्योतिषाचार्य डॉ. आचार्य सुशांत राज ने बताया कि चार दिवसीय लोकआस्था के महापर्व के अंतिम दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि होती है। इस दिन सूर्योदय के समय सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित किया जाता है जिसके बाद पारण कर व्रत को पूरा किया जाता है।
गुरुवार को खरना के बाद से व्रत करने वाली महिलाओं ने 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू कर दिया था। रातभर उन्होंने छठी मइया की आराधना की। घर-घर छठी मइया के गीत गाए जा रहे थे।
शनिवार को घाटों का माहौल पूरी तरह से भक्तिमय दिखा। व्रती पारंपरिक छठ गीतों मारबऊ रे सुगवा धनुष से, चला छठी माई के घाट, हे छठि माई, हे छठि माई, हम हई इहां परदेश में, आइल छठि के बरत… केरे उठायई माथे सुपवा, दउरवा, केरे करत घाट भराई… पटना के घाट पर हमहूं अरगिया देबहि हे छठी मइया… आदि गीत गाते हुए पहुंचे।
व्रत में चावल और गुड़ की खीर बनाने की परंपरा के पीछे धार्मिक और वैज्ञानिक कारण है। ज्योतिषाचार्य पंडित संदीप भारद्वाज शास्त्री व पीयूष भटनागर ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार, सूर्य की कृपा से ही फसल होती है।
इसलिए सूर्य को सबसे पहले नई फसल का प्रसाद अर्पण करना चाहिए। छठ पर्व के समय चावल और गन्ना तैयार होकर घर आता है। इसलिए गन्ने से तैयार गुड़ और नए धान के चावल का प्रसाद सूर्य देव को भेंट किया जाता है।