हिमालय दिवस: स्व. सुंदर लाल बहुगुणा की टीम ने सरकार को सौंपा था हिमालय बचाओ घोषणा पत्र

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देहरादून।  80 के दशक में टिहरी बांध विरोध के दौरान स्व. सुंदर लाल बहुगुणा की टीम ने हिमालय बचाओ घोषणा पत्र सरकारों को सौंपा था। हिमालयी नीति बनाने के उद्देश्य से हिमालय दिवस शुरू किया गया था, लेकिन अब तक आवश्यक गतिविधियों की कमी है। यह कहना है पर्यावरण विद सुरेश भाई का। सुरेश भाई हिमालयी क्षेत्र के पर्यावरण पर चार दशकों से काम कर रहे हैं। 

पर्यावरणविद सुरेश भाई ने वनों को बचाने के लिए रक्षा सूत्र आंदोलन, नदी बचाओ अभियान और गंगोत्री से गंगासागर तक हिमालय नीति अभियान चलाया है। वे हिमालयी विकास के लिए अलग मॉडल बनाने के पक्षधर हैं। उनका कहना है कि वैश्वीकरण के दौर में पर्यावरण व विकास के बीच युद्ध चल रहा है। विकास के हिमायती इस बात को भूल रहे हैं कि यह विकास पर्यावरण की सुरक्षा के बिना स्थायी नहीं रह सकता है।

आज हिमालय घायल अवस्था में है। ऐस में विचार करना बहुत जरूरी है कि हिमालय में जितने भी विकास कार्य हो रहे हैं, उसके लिए मैदानी विकास से हटकर पृथक मॉडल बनाने की आवश्यकता है। केंद्र व राज्य की सरकार को ध्यान देना होगा कि यदि हिमालयी विकास का अलग मॉडल नहीं बना तो हिमालय का क्षरण बड़ी तेजी से होगा। हिमालय दिवस इसलिए शुरू किया गया था कि इसके नाम पर राज्य और केंद्र सरकार हिमालय नीति की दिशा की ओर ध्यान देगी लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। 

हिमालय के संरक्षण की जिम्मेदारी हम सबकी: मुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का कहना है कि हिमालय हमारे जीवन के सरोकारों से गहनता से जुड़ा हुआ है। हिमालय के संरक्षण की पहली जिम्मेदारी भी हम सबकी है। हिमालय संरक्षण के लिए इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, नदियों एवं वनों का भी संरक्षण आवश्यक है। इसीलिए जल संरक्षण, संवर्धन तथा व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण राज्य सरकार की प्राथमिकता है।

हिमालय, हमारा भविष्य एवं विरासत दोनों है। हिमालय के सुरक्षित रहने पर ही इससे निकलने वाली सदानीरा नदियां भी सुरक्षित रह पाएंगी। हिमालय की इन पावन नदियों का जल एवं जलवायु पूरे देश को एक सूत्र में पिरोता है। गंगा एवं यमुना के प्रति करोड़ों लोगों की आस्था से भी यह स्पष्ट दिखाई देता है।

पर्यावरण संरक्षण हम उत्तराखंड वासियों के स्वभाव में है। हरेला जैसे पर्व हमारे पूर्वजों की दूरगामी सोच को दर्शाता है। हमारे प्रदेश में वनों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन भी प्रकृति की प्रेरणा से संचालित हुआ था। पर्यावरण की वर्तमान एवं भविष्य की समस्याओं से जुड़े विषयों पर समेकित चिंतन की जरूरत है।

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