देहरादून। संवाददाता। राष्ट्रवाद ओर राष्ट्रभक्ति के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही भाजपा के लिए भले ही अन्य मुद्दे कोई मायने न रखते हों लेकिन किसानों व ग्रामीणों द्वारा स्थानीय और निजी मुद्दों को लेकर जो आवाज बुलन्द की जा रही है वह भाजपा के चुनावी गणित को गड़बड़ा सकती है। मंगलौर में कई गावों के हजारों किसानों द्वारा अपने बकाया गन्ना भुगतान को लेकर आंदोलन शुरू कर दिया गया है। जिनका बस एक ही नारा है कि भुगतान नहीं तो वोट नहीं। वहीं टिहरी उत्तरकाशी के दर्जन भर गांव के लोग भी सड़क की मांग को लेकर चुनाव का यह कह कर बहिष्कार कर रहे है कि सड़क नहीं तो वोट नहीं। हांलाकि स्थानीय प्रशासन द्वारा उन्हे मनाने की कोशिशें की जा रही है कि वह चुनाव का बहिष्कार न करें और वोट डालने जरूर जायें। लेकिन किसानों व ग्रामीणों का यह गुस्सा सत्तारूढ़ भाजपा पर भारी पड़ सकता है।
हरिद्वार से भले ही पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत चुनाव न लड़ रहे हों लेकिन गन्ना किसानों के बकाया भुगतान के इस मुद्दें को वह लम्बे समय से उठा रहे थे अभी उन्होने गन्ना गंगा यात्रा भी निकाली थी। हरिद्वार जनपद के 86 गांवों के लोग अब एकजुट होकर बकाया गन्ना भुगतान के मुद्दे पर आंदोलित है। इन किसानों का साफ कहना है कि पहले बकाया भुगतान फिर वोट। उनका कहना है कि उनका कि उनका पिछले साल तक का भुगतान बकाया है और वह कर्ज लेकर अपना काम चला रहे है। किसान सम्मान योजना लांच करने वाली भाजपा सरकार भले ही इन किसानों को छह हजार साल देने की बात कर रही हो लेकिन उनका कहना है कि हमें भीख नहीं अपना हक चाहिए।
यही नहीं उत्तरकाशीए टिहरी के वाडियार पट्टी के दर्जन भर गांवों के लोग भी सड़क की मांग को लेकर वोट देने को तैयार नहीं है। उनका भी यही कहना है कि पहले सड़क फिर वोट। स्थानीय प्रशासन चुनाव बहिष्कार पर अड़े किसानों व ग्रामीणों को मनाने में जुटा हुआ है। भाजपा जिसके लिए एक एक वोट जरूरी है इन किसानों व ग्रामीणों द्वारा चुनाव का बहिष्कार करने या फिर भाजपा के खिलाफ मतदान करने दोनों स्थितियों में नुकसानदेय साबित होगा। सत्ता के खिलाफ किसानों के इस विरोध को भुनाने के लिए कांग्रेस नेता भी सक्रिय हो चुके है। देखना है कि आगे इन किसानों व ग्रामीणों का रूख क्या रहता है।